नई दिल्ली। योग अब बीमारियों से बचाव के साथ-साथ इलाज में भी कारगर साबित होने लगा है। योग पर एम्स की स्टडी में यह बात सामने आई है। हार्ट फेलियर के मरीजों पर एम्स की स्टडी में हार्ट फंक्शन में 10 फीसदी तक सुधार पाया गया है। जो मरीज चल फिर भी नहीं पाते थे, वे दवा के साथ योग का सेशन करने के बाद पूरे घर का काम संभाल रहे हैं। एम्स के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि योग को बढ़ावा देने के लिए हमें अंडर ग्रैजुएट एमबीबीएस कोर्स में इसे वैकल्पिक कोर्स के तौर पर लाने की जरूरत है और आम लोगों को भी योग के महत्व को समझना होगा। जिस प्रकार इलाज में कोई दवा खाना नहीं छोड़ सकता है, ठीक उसी प्रकार योग को बीच में नहीं छोडऩा चाहिए। सही तरीका और रेग्युलर योग से निश्चित रूप से फायदा होता है। एम्स अपनी स्टडी से यह साबित करने में लगा हुआ है। मरीजों को दवा के साथ योग कराया जा रहा है
दवा के साथ योग करने से दिल का मरीज होगा फिट!
एम्स के कार्डियॉलोजी डिपार्टमेंट के डॉ. संदीप सेठ ने कहा कि हमने हार्ट फेलियर मरीजों के लिए एक योग सेशन तैयार किया है, जिसे क्रयोग (्य्रक्रङ्घह्रत्र) का नाम दिया गया है। क्र यानि कार्डिऐक यानी हार्ट और योग का मिश्रण है। इसमें मरीजों को दवा के साथ-साथ योग कराया जा रहा है। डॉक्टर ने कहा कि इसमें हम हार्ट फेल के ऐसे मरीजों को शामिल करते हैं जिनका हार्ट कमजोर है और हार्ट ब्लड को पंप नहीं कर पा रहा है। प्रकृति के अनुसार बॉडी की जरूरत का ख्याल रखते हुए हम उनकी लाइफस्टाइल और डायट पर खास ध्यान रखते हैं। डॉ. सेठ ने कहा कि इसमें अभी 20 मरीजों पर स्टडी शुरू हुई है लेकिन आगे 100 मरीजों को इसमें शामिल करेंगे।
डॉक्टर सेठ ने कहा कि हमने एम्स के इंटीग्रेटेड सेंटर के साथ स्टडी शुरू की है, जिसमें ट्रेनर की मदद ले रहे हैं। आयुर्वेद फीजिशियन को शामिल किया गया है। मरीज को दो ग्रुप में बांटकर एक ग्रुप को दवा के साथ योग करा रहे हैं और एक ग्रुप में केवल दवा दी जा रही है। जिस ग्रुप में योग कराया जा रहा है, उसमें अडिशनल बेनिफिट देखा गया। जिस मरीज का हार्ट रेट केवल 20 पर्सेंट काम कर रहा था, वह 30 पर्सेंट तक पहुंच गया। अब हम यह कोशिश कर रहे हैं कि हार्ट की इस बीमारी के लिए कौन सा योग किया जाए, कितना मेडिटेशन किया जाए, कितने समय तक किया जाए, यह तीन स्टडी करें और फिर हम इस नतीजे पर पहुंच पाएंगे कि ब्रीदिंग में सुधार के लिए योग का कौन सा प्रारूप कितना कारगर है, जिसे बाद में कोई मरीज पूरे विश्व में अपना सकेगा।