नई दिल्ली: दिल्ली सरकार की राजनीति में आए दिन परिवर्तन की झलक दिखती है, लेकिन यहां सरकारी अस्पतालों में नियुक्त डॉक्टर हैं कि बदलने का नाम ही नहीं ले रहे। सरकारी सिस्टम में तबादला नहीं होना भी भ्रष्टाचार को जन्म देता है, इसलिए भाजपा, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन को कोस रही है कि मरीजों का इलाज पस्त है और अधिकारी डॉक्टर मस्त हैं।
सूचना के अधिकार से मिली जानकारी से खुलासा हुआ कि चहेते डॉक्टर नियमों को ताक पर रखकर लंबे समय से एक जगह टिके हुए हैं। कई डॉक्टर तो ऐसे हैं जो नियुक्ति के समय से ही एक अस्पताल या डिस्पेंसरी में तैनात हैं, लेकिन उनका तबादला करने की जहमत किसी ने नहीं उठाई। ऐसे में संबंधित विभागीय अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
सूत्रों की मानें तो तबादले के पीछे स्वास्थ्य विभाग में बड़ा खेल चल रहा है। 2014 में तत्कालीन स्वास्थ्य सचिव एससीएल दास ने सभी ट्रांसफर ऑनलाइन प्रक्रिया के तहत किए जाने की बात कही थी और इसके लिए गाइडलाइन जारी की थी। बावजूद इसके वर्तमान में भी स्वास्थ्य विभाग में मैन्युअल ट्रांसफर चल रहे हैं। विशेषज्ञों की मानें तो कानून के मुताबिक नियुक्तियों और तबादले में एक अधिकारी को तीन और पांच वर्ष से ज्यादा कहीं नहीं रखा जा सकता लेकिन आरटीआई गवाह है कि दिल्ली सरकार की कई डिस्पेंसरी में डॉक्टरों की नियुक्ति होने के बाद 15 साल से ज्यादा का समय बीतने के बावजूद ट्रांसफर नहीं हुआ है।
आंकड़ों का सच
 नांगली सकरावती स्थित डिस्पेंसरी में डॉ. अन्नुरानी 16 वर्षो से तैनात हैं और विभाग की ओर से डॉ. अन्नुरानी को पीजी एलाउंस भी दिया जाता है। इसी तरह डॉ. सी.एस भोगल, बाबू जगजीवन राम में वर्ष 1999, डॉ. शुभ्रा अग्रवाल, डॉ. तरूण कुमार बाबू जगजीवन राम में वर्ष 2000,  डॉ. विजय पाल खारी, डॉ. रितू चोपड़ा अरूणा आसफ अली अस्पताल में वर्ष 2000, डॉ.  मनोज गामी, गुरू गोविंद सिंह अस्पताल में वर्ष 2000 से जमे हुए हैं। स्वास्थ्य सचिव चंद्राकर भारती मामले की जांच करा कर सख्त कार्रवाई की बात कह रहे हैं।