लखनऊ
निजी अस्पतालों की मनमानी में सीएमओ दफ्तर की मुख्य भूमिका सामने आ रही है। पिछले एक साल में सीएमओ ऑफिस ने मरीजों की मौतों पर मीडिया के दबाव में जिन अस्पतालों का लाइसेंस निरस्त किया, उन्हें ही मिलते-जुलते नाम से दोबारा पंजीकृत कर लिया। दुबग्गा, तेलीबाग, चौक और मोहनलालगंज के कई निजी अस्पतालों को लेकर ऐसा ही सच सामने आया है। आरोप लग रहे हैं कि सीएमओ ऑफिस की मिलीभगत से ही कई निजी अस्पताल, क्लीनिक और नर्सिंग होम अपना धंधा चला रहे हैं। इस मामले में निजी अस्पताल से कहीं ज्यादा दोषी रजिस्ट्रेशन व्यवस्था है। अब बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि आखिर जिन रजिस्टर्ड अस्पतालों में मौतों के बाद खामियां मिलती हैं, आखिर उनका भौतिक सत्यापन पहले ही क्यों नहीं किया गया होता।
रामराज हॉस्पिटल का नाम बदला – इस हॉस्पिटल का पूर्व में नाम रामराज हॉस्पिटल था। इस अस्पताल में कई गैर कानूनी काम होते पकड़े गए थे। सीएमओ की टीम ने इस अस्पताल को पिछले वर्ष सील किया था। इस अस्पताल की सील तोडक़र अस्पताल का नाम बदल दिया गया और इसका संचालन फिर से होने लगा।
हिन्दुस्तान अब अवध अस्पताल – मोहनलालगंज का यह हिन्दुस्तान हॉस्पिटल के नाम का अस्पताल पहले अवध हॉस्पिटल के नाम से संचालित होता था। स्वास्थ्य विभाग की छापेमारी के बाद इस अस्पताल के बोर्ड बदल दिए गए। एक बार अस्पताल में छापेमारी के बाद स्वास्थ्य विभाग भूल गया।
केयर हॉस्पिटल की विभाग कर रहा स्पेशल केयर-कुछ वर्ष पहले केयर हॉस्पिटल को स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने सील किया। कुछ ही दिनों बाद इस अस्पताल का फिर से संचालन होने लगा। अधिकारियों के अस्पताल की अनियमितताएं नजर नहीं आई।
दोषी सिस्टम, जिम्मेदार जवाब दो मांगते हैं शपथ-पत्र-निजी अस्पताल, क्लीनिक, पैथॉलजी और नर्सिंग होम के लिए पंजीकरण फॉर्म भरने के साथ ही आवेदक से प्रार्थना पत्र और फोटो के साथ शपथपत्र जमा कराया जाता है। विभाग में बाबू सौरभ से फॉर्म खरीदने के बाद उन्हीं के पास यह फॉर्म जमा भी होता है। उसके बाद आवेदकों को इंतजार करने को कह दिया जाता है।
होता है भौतिक सत्यापन – आवेदनों की जांच कर सभी दस्तावेज सही पाए जाने पर एसीएमओ की अध्यक्षता में कमिटी इन अस्पतालों की जांच करती है। मानकों की जांच कर रिपोर्ट तैयार होती है। इससे पहले क्षेत्र के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र या बाल महिला अस्पताल के अधिकारियों से भी जरूरत पडऩे पर रिपोर्ट मांगी जाती है।
सीएमओ देते हैं फाइनल अप्रूवल – कमेटी की रिपोर्ट सीएमओ को भेज दी जाती है। इस रिपोर्ट के आधार पर सीएमओ पंजीकरण के आवेदन को मंजूर या नामंजूर करते हैं। उनका दस्तखत होने के बाद इन चिकित्सा संस्थानों को पंजीकरण नंबर दे दिया जाता है। इस नंबर का भरोसा करके ही मरीज इन संस्थानों में भर्ती होते हैं।
अस्पतालों के बोर्ड पर नाम बदला, धंधा नहीं – एसीएमओ ने बताया कि आवेदन को केवल शक के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता। जिसने भी पंजीकरण के लिए आवेदन किया, उससे शपथ-पत्र लिया जाता है और भौतिक सत्यापन कर मानकों की जांच होती है। हालांकि कार्रवाई को लेकर सीएमओ ऑफिस के अधिकार काफी सीमित है। मैन पावर की भी कमी है।