पटना: फार्मेसी डिग्री घोटाला नामांकन के 24 साल बाद छात्र देंगे प्रथम वर्ष की परीक्षा, जी हां, हाल ही में बिहार सरकार द्वारा ऑनलाइन ड्रग लाइसेंस प्रक्रिया शुरु की जा रही है जिससे अवैध दवा कारोबारियों में हड़कंप मचा है। वही केंद्र सरकार द्वारा थोक दवा व्यापार में भी फार्मासिस्टों की अनिवार्यता सुनिश्चित करने का प्रयास किया जा रहा है। ऐसे में दवा माफिया को फार्मासिस्टों की डिग्री की मांग बढ़ रही है, जिसके फलस्वरुप बिहार के एक निजी फार्मेसी कॉलेज ने पिछले 24 साल के वैकेंसी पर नामांकन लेकर फार्मेसी घोटाले का एक नया अध्याय शुरू कर दिया है, ऐसे में निजी कॉलेज के 1993 से खाली सभी सीटों पर नामांकन करा कर बैक ईयर कोर्स को अंजाम दे रहे हैं तथा अभ्यार्थियों से मनमाने ढंग से पैसा लिया जा रहा है।

पीसीआई एवं स्वास्थ्य अधिकारियों की चुप्पी से उठे सवाल
ज्ञात हो कि एजुकेशन रेगुलेशन के अनुसार प्रत्येक कोर्स हेतु निश्चित समय सीमा और उम्र सीमा का निर्धारण किया गया है। बीच में होने वाले अंतराल अवधि भी सुनिश्चित की गई है जो लगभग 3 से 5 साल की होती है लेकिन स्वास्थ्य विभाग बिहार सरकार एवं फार्मेसी कौंसिल ऑफ इंडिया की चुप्पी के कारण आम जनता को इसमें उन की संलिप्तता नजर आ रही है। राज्य के कई एक्टिविस्टों ने सूचना अधिकार के तहत भी सूचना मांगी थी लेकिन उन्हें जवाब नहीं मिला। उधर, राजकीय फार्मेसी संस्थान के छात्रों ने जब मामले को लेकर धरना प्रदर्शन एवं भूख हड़ताल की चेतावनी दी तो परीक्षा नियंत्रक प्रभात कुमार द्वारा 2016 में होने वाली परीक्षा स्थगित कर दी गई थी। पीसीआई से इस मुद्दे पर स्पष्टीकरण मांगा गया था लेकिन पीसीआई की चुप्पी के कारण परीक्षा नियंत्रक द्वारा उन छात्रों का फिर से परीक्षा हेतु पत्र कॉलेज प्रशासन को भेज दिया गया है। ज्ञात हो कि इन 24 साल के खाली सीटों पर 300 से अधिक नामांकन लिए जा चुके हैं जबकि हैरान करने वाली बात तो यह है कि परीक्षार्थी की उम्र औसत 65-70 है।