नई दिल्ली। तीसरे जनऔषधि दिवस पर केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर ने जेनेरिक दवाओं के प्रचलन को बढ़ाने की अपील की। जावडेकर ने डॉक्टरों से कहा कि उन्हें रोगियों के परचे पर जेनेरिक दवाएं लिखनी चाहिए। गंभीर बीमारी हो तो ब्रांडेड दवाएं लिखी जा सकती हैं, अन्यथा जेनेरिक दवाओं के प्रचलन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। सरकार के मुताबिक, जेनेरिक दवाओं से गरीब लोगों को बड़ी राहत मिल सकती है क्योंकि ऐसी दवाएं ब्रांडेड दवाओं की तुलना में बेहद सस्ती होती हैं। सरकार अब लोगों और डॉक्टरों को जागरूक करने के लिए अभियान चलाने जा रही है।
दरअसल सरकार की तरफ से जनऔषधि केंद्र चलाए जा रहे हैं जहां 80-90 परसेंट तक कम कीमतों पर दवाएं बेची जाती हैं। इन केंद्रों पर जेनेरिक दवाएं ही बेची जाती हैं। गरीबों के लिए शुरू की गई यह योजना काफी लोकप्रिय हो रही है और देश के दूर-दराज इलाकों में भी यह केंद्र खोले जा रहे हैं। सरकार इस केंद्र को शुरू करने के लिए आर्थिक मदद भी देती है। जिन लोगों ने फार्मासिस्ट का कोर्स किया है, वे कुछ जरूरी पात्रता और पूंजी के साथ यह केंद्र खोल सकते हैं। भारत सरकार यह योजना प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना के तहत चला रही है।
प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना भारत सरकार द्वारा की गई एक विशेष पहल है, जो किफायती कीमत पर क्वालिटी दवाएं उपलब्ध कराने की कोशिश कर रही है। इसके स्टोर की संख्या बढ़कर 7,400 से ज्यादा हो गई है और देश के सभी 734 जिले इसके दायरे में आ चुके हैं। सरकार की तरफ से जनऔषधि केंद्र शुरू करने का सुनहरा मौका दिया जाता है। आम आदमी भी यह केंद्र खोलकर अच्छी कमाई कर सकता है। इस केंद्र को खोलने के लिए आप ऑनलाइन अप्लाई कर सकते हैं। भारतीय जनऔषधि परियोजना के तहत सरकार ढाई लाख रुपये की आर्थिक मदद करती है जिससे आप आसानी से औषधि केंद्र खोल सकते हैं। सरकार पूरे ढाई लाख रुपये एक साथ नहीं देती है बल्कि किस्तों में यह राशि जारी की जाती है।
यह पैसा हर महीने इंसेन्टिव के रूप में दिया जाता है। दरअसल, कंपनियां दो तरह की दवाएं बनाती हैं। एक जेनेरिक और दूसरी ब्रांडेड। दोनों दवाओं का कंपोजिशन एक ही होता है। बस ब्रांड का फर्क होता है। जेनेरिक दवाएं कंपोजिशन के नाम से बेची जाती हैं, न कि दवा का कोई ब्रांडेड नाम होता है। दवा का नाम कंपोजिशन के नाम पर ही होता है और इसी नाम पर बेचा भी जाता है। ब्रांड नहीं जुड़ने के चलते ऐसी दवाएं सस्ती होती हैं। दूसरी ओर, कंपोजिशन के साथ ब्रांड का नाम जुड़ने से ब्रांडेड दवाओं की कीमत कई गुना तक बढ़ जाती हैं। दोनों तरह की दवाओं का निर्माण देखें तो एक ही तरह के सॉल्ट से बनती हैं लेकिन नाम का फर्क हो जाता है। जैसे कोई कंपनी बुखार की दवा पैरासिटामोलस को दोनों रूपों में बेचती है।
अगर पैरासिटामोल के नाम से बेचा जाए तो यह जेनेरिक दवा होगी, जबकि कंपनी का कोई ब्रांड जुड़ जाए तो यह ब्रांडेड दवा होगी। पैरासिटामोल को अगर क्रोसिन के नाम से बेचा जाए तो यह ब्रांडेड कहलाएगी। सिर्फ ब्रांड के चलते दवा की कीमत में बड़ा अतर आ जाता है। सच्चाई यह है कि दोनों दवाएं एक ही तरह का काम करती हैं क्योंकि दोनों का कंपोजिशन समान होता है। पीएमबीजेपी के तहत एक दवा की कीमत टॉप के तीन ब्रांडेड दवाओं के औसत मूल्य से 50 प्रतिशत कम मूल्य के सिद्धांत पर रखी गई है।
इसलिए, जन औषधि दवाओं की कीमत कम से कम 50 प्रतिशत और कुछ मामलों में ब्रांडेड दवाओं के बाजार मूल्य का 90 प्रतिशत तक कम है। चालू वित्त वर्ष 2020-21 में, पीएमबीजेपी ने 5 मार्च, 2021 तक 593.84 करोड़ रुपये (एमआरपी पर) की बिक्री की है। इसके कारण देश के आम नागरिकों के लगभग 3600 करोड़ रुपये की बचत हुई है।