नई दिल्ली। बच्चों का मुंह से सांस लेना या अंगूठा चूसना उसके दांतों की सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है। इससे मसूढ़े खराब हो सकते हैं। एक शोध के अनुसार राजधानी दिल्ली के 40 प्रतिशत बच्चे अंगूठा चूसते हैं और 38 प्रतिशत बच्चे नाक की बजाय मुंह से सांस लेते हैं। इस कारण उनमें मसूढ़े के रोग और दांत के मैलोक्लुजन होने का खतरा रहता है। अधिकतर पैरेंट्स इस बात से अनजान हैं। साउथ एशियन एसोसिएशन ऑफ पीडियाट्रिक डेंटिस्ट्री (स््र्रक्कष्ठ) के सम्मेलन में मौलाना आजाद इंस्टिट्यूट ऑफ डेंटल साइंस के डॉक्टर ज्ञानेंद्र कुमार ने यह स्टडी पेश की। उन्होंने कहा कि बच्चों में दांत की समस्याओं पर पहली बार ऐसी व्यापक स्टडी की गई है।
इस दौरान दो महीने में 14 साल तक के एक हजार बच्चों के माता-पिता से लिखित में सवाल पूछे गए, जिनके जवाब में यह खुलासा हुआ। 82 फीसदी माता-पिता ने स्टडी के दौरान जानकारी दी कि वे लोग सिर्फ दिक्कत होने पर ही अपने बच्चे को डेंटिस्ट के पास लेकर जाते हैं, जबकि यह गलत परंपरा है। 40 फीसदी से ज्यादा बच्चे अंगूठा चूसने के कारण मैलोक्लुजन (दो दांतों के बीच गलत अलाइनमेंट या जबड़ा बंद होने पर दांत आपस में रगड़ खाते हैं) से पीडि़त थे।
38 फीसदी बच्चों में नाक की बजाय मुंह से सांस लेने की आदत थी, जिसकी वजह से उनमें मसूढ़े के रोग और दांत के मैलोक्लुजन होने का खतरा बना हुआ था। 60 फीसदी से ज्यादा पैरेंट्स ने बताया कि उनके बच्चे दिन में सिर्फ एक बार ब्रश करते हैं, जबकि डेंटिस्ट दो बार की सलाह देते हैं।
एक बार ब्रश करने से दांत कमजोर होते हैं। 85 फीसदी माता-पिता इस बात से अनजान थे कि बच्चों के लिए अलग प्रकार के टूथपेस्ट उपलब्ध हैं। वे बच्चों को वही पेस्ट देते थे, जिसका इस्तेमाल वे खुद करते थे। पैरेंट्स को इस बात का विशेष ख्याल रखना चाहिए कि बच्चों का टूथपेस्ट फ्लोराइड युक्त हो। फ्लोराइड दांत को कमजोर होने से बचाता है। बच्चों के टूथपेस्ट में लुब्रिकेंट और फ्लोराइड होता है जो मुंह की समस्याओं को रोकने में मदद करता है। अगर पैरेंट्स बच्चों को लेकर हर 6 महीने में डेंटिस्ट के पास जाएं तो दांत की बीमारियों को आसानी से रोका जा सकता है।