चंडीगढ़। देश में लॉकडाउन से छूट मिलने वाली जरूरी सर्विसेस में मेडिकल से जुड़े काम सबसे ऊपर आते हैं, फिर भी देश के कई हिस्सों में स्वास्थ्य के प्राइवेट इलाज पर खास असर पड़ा है। कई हिस्सों में प्राइवेट अस्पताल बंद हैं और अगर खुल भी रहे हैं तो सिर्फ कुछ घंटों के लिए। इमरजेंसी से इतर जो भी ऑपरेशन थे उन्हें अनिश्चित समय के लिए टाल दिया गया है। प्राइवेट क्लीनिक के डॉक्टर मिलने की जगह वॉट्सएप या फोन पर दवा और इलाज देना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। देश में प्राइवेट अस्पताल का खुलना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि देश की आधी से ज्यादा आबादी बीमार होने पर इन्हीं अस्पतालों में इलाज करवाती है। 2015-16 के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक, शहरी इलाकों की 56त्न और ग्रामीण इलाकों की 49त्न जनसंख्या तबियत बिगडऩे पर सबसे पहले प्राइवेट अस्पताल या क्लीनिक का ही रुख करती है। राजस्थान के जयपुर में एक हजार से ज्यादा प्राइवेट क्लीनिक हैं। लॉकडाउन के चलते इसमें से 90 फीसदी क्लीनिक चालू तो हैं, लेकिन बमुश्किल कुछ घंटे ही काम कर रहे हैं। परकोटे के किशनपोल बाजार में 40 साल से क्लीनिक चला रहे डॉ. वासुदेव थावानी बताते हैं कि कफ्र्यू की वजह से वे एक शिफ्ट में तीन घंटे ही क्लीनिक खोल रहे हैं। पहले उनकी क्लीनिक पर दो शिफ्ट में 100 से ज्यादा मरीज आते थे। लेकिन, अब 20 मरीज ही आ रहे हैं। डॉ. थावानी के मुताबिक, छोटी-मोटी चोट या बीमारी में मरीज आसपास के मेडिकल स्टोर से दवा ले रहे हैं या घरेलू उपचार ही कर रहे हैं। कुछ लोग फोन पर दवा पूछ लेते हैं। हरियाणा के पानीपत में 130 प्राइवेट अस्पताल हैं। इनमें से 80 अस्पतालों में ओपीडी चल रही है लेकिन, मरीजों की संख्या न के बराबर है। प्रवीण कुमार पत्नी को दवा दिलवाने लेकर गए थे। यहां गेट पर ही उनसे कह दिया कि खांसी-जुकाम या गले में दर्द है तो सिविल अस्पताल जाएं। हालांकि, प्रवीण को पत्नी के लिए पेट दर्द की दवा चाहिए थी। कमलेश हार्ट पेशेंट हैं। उन्हें चेकअप के लिए अस्पताल जाना था लेकिन नहीं गए। उन्होंने पूरे महीने की दवाई मंगा ली हैं। अस्पताल और अच्छे क्लीनिक बंद होने का उसका फायदा झोलाछाप डॉक्टर उठा रहे हैं। छोटी मोटी बीमारी के लिए मरीज इनके पास ही जा रहे हैं। महाराष्ट्र में कफ्र्यू लगने के 2-3 दिन बाद क्लीनिक और प्राइवेट नर्सिंग होम बंद होने की शिकायत मिली थी। इसके बाद बीएमसी ने महानगर के 20 क्लीनिक को एपिडेमिक डिसीज एक्ट का उल्लंघन करने के आरोप में नोटिस भेजा था। इसके बाद मुंबई, पुणे, औरंगाबाद और नागपुर में सभी क्लीनिक खुल रहे हैं। आईएमए महाराष्ट्र के अध्यक्ष डॉ. अविनाश भोंडे का कहना है कि प्राइवेट प्रैक्टिस करने वालों को पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) नहीं मिल रहे हैं। जिस वजह से डॉक्टर क्लीनिक खोलने में डर रहे हैं। पंजाब के साढ़े सात हजार प्राइवेट अस्पतालों में से 85 फीसदी अस्पतालों की ओपीडी बंद है। इस वजह से गायनिक, अस्थमा, ऑर्थो और किडनी जैसे मरीजों को काफी परेशानियां हो रही हैं। प्राइवेट क्लीनिक में डॉक्टर अपने पुराने मरीजों को ही देख रहे हैं। यहां इमरजेंसी सेवा तो चालू है, लेकिन उसकी फीस 500 रुपए से ज्यादा है। ऐसे में डॉक्टर इमरजेंसी फीस लेकर ओपीडी में ही चेकअप कर रहे हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने निर्देश दिए हैं कि अगर अस्पतालों ने ओपीडी नहीं खोली, तो उनका लाइसेंस रद्द किया जाएगा। यहां के डॉ. नरेश बाठला का कहना है कि मौसम बदलने से सर्दी-खांसी, जुकाम हो रहा है। ऐसे में लोगों को लग रहा है कि कहीं कोरोना तो नहीं हो गया, लेकिन सही डॉक्टरी सलाह नहीं मिलने से मरीज परेशान हो रहे हैं। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के ज्यादातर इलाकों में प्राइवेट क्लीनिक बंद हैं। डॉक्टरों ने गेट पर ही ‘क्लीनिक बंद है’ का नोटिस चस्पा कर दिया है। यहां बच्चों के डॉ. अशोक भट्ट की क्लीनिक खुली तो है, लेकिन उनकी जगह उनके असिस्टेंट ही मरीजों को देख रहे हैं। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में बच्चों को टीके लगाने के दौरान भीड़ न जमा हो इसके लिए माता-पिता को अलग-अलग दिन बुला रहे हैं। यही नहीं जिन डॉक्टरों की उम्र 50 साल से ज्यादा है, वे भी अस्पताल या क्लीनिक आना टाल रहे हैं। बिहार में पटना के 90 फीट के पास डॉ. शैलेष कुमार के क्लीनिक पर वैशाली, समस्तीपुर, मुजफ्फरनगर जैसे जिलों से मरीज आते थे, लेकिन लॉकडाउन के कारण कोई नहीं आ रहा। डॉ. ने लॉकडाउन तक क्लीनिक ही बंद कर दिया है। वहीं डॉ. सीपी शुक्ला कहते हैं कि हम डॉक्टरों को मरीजों से कोरोना का डर भी सता रहा है। इसलिए क्लीनिक बंद रखा है। मध्य प्रदेश के भोपाल के डॉ. योगेश के मुताबिक, डॉक्टर्स वॉट्सऐप पर वीडियो कॉल के जरिए मरीजों से बात कर रहे हैं और उन्हें दवाएं दे रहे हैं। वहीं कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित इंदौर में हालात ये हैं कि प्राइवेट अस्पतालों में मरीजों को दरवाजे से ही लौटा दिया जा रहा है। अस्पतालों को रेड, ग्रीन और येलो जोन में बांट दिया है। आईएमए इंदौर के अध्यक्ष डॉ. संजय लोंढे के मुताबिक, येलो कैटेगरी के अस्पतालों में डॉक्टर्स ही नहीं हैं। कई बार मरीजों को सर्दी-खांसी, जुकाम होने पर भी कोविड-19 अस्पताल भेजा जा रहा है।