नई दिल्ली। नीति आयोग देश के सरकारी अस्पतालों को लेकर नई नीति तैयार कर रहा है। नई नीति के तहत सरकारी जिला अस्पतालों को प्राइवेट हाथों में सौंपा जा सकता है। योजना के तहत निजी व्यक्ति या संस्थान मेडिकल कॉलेज की स्थापना और उसे चलाने के लिए भी जिम्मेदार होंगे। इन मेडिकल कॉलेजों से सेकेंडरी हेल्थकेयर सेंटर को भी जोड़ा जा सकता है। ये सेंटर भी निजी हाथों से नियंत्रित होंगे।
नीति आयोग ने ‘पीपीपी मॉडल के तहत नए और मौजूदा निजी मेडिकल कॉलेज से जिला अस्पतालों को जोडऩे की योजना’ को लेकर 250 पन्नों का दस्तावेज जारी किया है। इसके माध्यम से इस योजना में हिस्सा लेने वालों (शेयरधारकों) से प्रतिक्रिया मांगी गई है।
इस योजना की आवश्यकता के पीछे की वजह को रेखांकित करते हुए कहा गया है कि केंद्र और राज्य की सरकार अपने सीमित संसाधन और सीमित खर्च की वजह से चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में अंतर को नहीं समाप्त कर सकती है। ऐसे में स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ाने और मेडिकल की पढ़ाई की लागत को तर्कसंगत बनाने के लिए यह जरुरी है। इस योजना से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप योजना के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किए गए काम पर आधारित है। इसके तहत जिन लोगों को इस योजना को लागू करने के लिए छूट मिलेगी, वे मेडिकल कॉलेज का डिजाइन, निर्माण, वित्त, संचालन और रखरखाव करेंगे और संबंधित जिला अस्पताल का संचालन और रखरखाव भी करेगें। जिन राज्यों में जिला अस्पतालों की हालत सही नहीं है या जहां मेडिकल सेक्टर धन के लिए संघर्षरत है, वे अपनी स्वेच्छा से इस योजना को लागू कर सकते हैं। इस योजना के लागू होने से मेडिकल कॉलेजों की कमियां दूर होंगी और जिला अस्पतालों की हालत काफी अच्छी हो जाएगी। सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इस पर तीखी आपत्ति जताई है। जन स्वास्थ्य अभियान के नेशनल को-कनवेनर डॉ. अभय शुक्ला का कहना है कि इस नीति की वजह से स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच और गुणवत्ता से समझौता करना पड़ेगा, खासकर गरीबों को। हमारी सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा में निवेश की जरूरत है। किसी का यह कहना कि हमारे पास लिए संसाधन नहीं हैं, यह एक हास्यास्पद तर्क है क्योंकि हमारा स्वास्थ्य सेवा खर्च दुनिया में सबसे कम है। पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया की प्रिया बालासुब्रह्मण्यम ने कहा कि इस तरह की व्यवस्थाओं में भले ही कुछ बेड मुफ्त हों, लेकिन जो मरीज भुगतान नहीं कर पाएंगे, उन्हें न के बराबर प्राथमिकता दी जाएगी। ऐसे मॉडल में निजी पार्टियों पर जवाबदेही तय करना मुश्किल हो सकता है।