जयपुर। राजस्थान मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड (आरएमएससीएल) ने नि:शुल्क दवा योजना के तहत अस्पतालों में सप्लाई करने वाले सर्जिकल आइटम जैसे कैथेटर्स, केन्युला, नेजल ट्यूब, यूरोलॉजी स्टेंट व सूचर्स की खरीद प्रक्रिया के नियम 8 साल बाद बदले दिए हैं। संशोधित नियमों के तहत जांच करने वाली डॉक्टरों की टेक्नीकल कमेटी को भंग कर आरएमएससी खरीदने के बाद हर बैच व सप्लाई के समय सर्जिकल आइटम व सूचर्स की खुद अपने स्तर पर जांच करेगी। अब सवाल उठता है कि सर्जिकल आइटम खरीदने से पहले जांच नहीं कराकर बाद में कराने पर क्वालिटी कैसे कंट्रोल हो पाएगी। निशुल्क दवा योजना के तहत प्रदेश में सर्जिकल आइटम व सूचर्स करीबन 50 करोड़ रुपए के खरीदे जाते हैंै। फार्मा एक्सपर्ट वी.एन.वर्मा के अनुसार टेंडर में शामिल होने वाली कंपनियों से क्वालिटी मेंटेन रखने के लिए यूएस-एफडीए व यूरोपियन सर्टिफिकेट यानी (सीई) प्रमाण-पत्र मांगा जाता है।

एम्स नई दिल्ली, पीजीआई चंडीगढ़, राम मनोहर लोहिया जैसे बड़े-बड़े संस्थानों में खरीद प्रक्रिया में कंपनी की ओर से प्रमाण-पत्र लिया जाता है। आरएमएससी की ओर से प्रमाण-पत्र नहीं मांगना गुणवत्ता पर प्रश्नचिन्ह लग गया है। जांच में टेक्नीकल कमेटी के सदस्यों में डॉक्टर नहीं हंै, तो क्वालिटी पर असर पड़ेगा। एसएमएस अस्पताल के डॉ.आर.के.जैनव का कहना है कि डॉक्टर न केवल क्वालिटी बल्कि मरीज की उपयोगिता के आधार पर जांचने के बाद सही या गलत का निर्णय लेता है। अब जैसा आरएमएससी की ओर से आएगा, वैसा ही अस्पताल वालों को इस्तेमाल करना पड़ेगा। आरएमएससीएल के कार्यकारी निदेशक (प्रिक्योरमेंट) वी.सी. बुनकर का कहना है कि क्वालिटी कंट्रोल को बढ़ाने के लिए पॉलिसी में बदलाव किया गया है।

कंपनी की ओर से आपूर्ति करने पर हर बैच व सप्लाई करने पर जांच कराएंगे। डॉक्टरों की टेक्नीकल कमेटी की अब जरूरत नहीं रहेगी। अस्पतालों में सप्लाई होने वाले सर्जिकल आइटम व सूचर्स की जांच के लिए पहले सात डॉक्टरों की टेक्नीकल कमेटी बनी हुई थी। इसमें सर्जरी, कार्डियोलॉजी व न्यूरोसर्जरी आदि विभागों के डॉक्टर थे। जो हर तरह से नमूनों की साइज, क्वालिटी व मरीजों की उपयोगिता के हिसाब से जांचने-परखने के बाद आरएमएससी को रिपोर्ट पेश करते थे। उनकी रिपोर्ट के आधार पर ही आरएमएससी खरीदने का निर्णय लेती थी।