रायपुर: राज्य के सरकारी अस्पतालों में मरीजों को डॉक्टर जो दवा लिख रहे हैं वह उपलब्ध नहीं हो रही। इसके पीछे कभी स्टाक खत्म होने की बात कही जा रही है तो कभी कोई कहता है कि कमीशन वाली ब्रांडेड दवाओं के कारण स्थिति खराब हो रही है। मरीज निजी दवा दुकानदारों से महंगी दवाएं खरीदने को विवश है। स्वास्थ्य विभाग दावा करता है कि अस्पतालों में दवाएं पर्याप्त हैं। सूत्रों की मानें तो स्वास्थ्य विभाग के आरोग्य हेल्पलाइन नंबर 104 पर सालभर में अस्पतालों में दवा नहीं मिलने की एक हजार से अधिक शिकायतें दर्ज हुई हैं। यह हाल तब है जब सालभर में 152 करोड़ की दवा खरीद की जाती है। अभी 4 करोड़ की दवा खरीदी प्रक्रिया जारी है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के आयुक्त आर प्रसन्ना का कहना है कि सीजीएमएससी द्वारा की जा रही दवा सप्लाई में इंपु्रवमेंट है। मैं स्वीकार करता हूं कि मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में अधिक समस्या है, अपेक्षाकृत जिला अस्पताल के। विभाग की पूरी कोशिश है कि हर अस्पताल में दवा उपलब्ध हो।
गौरतलब है कि राज्य सरकार ने 2012 में छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कॉर्पोरेशन (सीजीएमएससी) को दवा खरीदी का जिम्मा सौंपा। इस कॉर्पोरेशन को उपकरण खरीदी, भवनों के निर्माण का जिम्मा भी सौंप दिया गया। हालात ये हैं कि इनमें से कोई भी काम समय पर नहीं हो पा रहा। अगर दवा खरीदी मूल काम है तो दवा खरीदी ही करवानी चाहिए। वैसे जीएसटी लागू होने का असर भी दवा खरीदी पर भी पड़ा। करीब 5 करोड़ की खरीदी प्रभावित हुई। कंपनियों ने वर्कऑर्डर के बाद सप्लाई से इनकार कर दिया। री-टेंडर की प्रक्रिया की गई। अभी स्वाइन फ्लू, डायक्लोफेनेक सोडियम (दर्द), पेरासिटामॉल (दर्द), सेफ ट्राई एक्सोन (एंटीबायोटिक), कोट्रिनुक्साजोल (एंटीबायोटिक) जैसी प्रमुख दवाएं वेयर हाउस में नहीं हैं।
मेडिकल कॉलेज अस्पताल, जिला अस्पताल यहां तक कि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) तक के बाहर निजी दवा दुकानें संचालित हैं। दवा दुकानें पूरी तरह इन सरकारी अस्पतालों पर निर्भर हैं, क्योंकि डॉक्टर्स ब्रांडेड दवाएं लिखते हैं या फिर अस्पतालों में दवा का स्टाक नहीं होता। जनऔषधि केंद्र का लाभ इसलिए नहीं मिल रहा क्योंकि वहां जेनेरिक दवाएं ही होती हैं जबकि डॉक्टर ब्रांडेड दवा ही लिख रहे हैं।