मोतिहारी: राज्य की नीतीश सरकार सत्ता के लालच में दल-बदल करने में जुटी है, इधर जमीन पर स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल है। स्वास्थ्य के लिए पूर्वीं चंपारण का सालाना बजट करीब 90 करोड़ आता है लेकिन मरीजों को दवा तक निजी दुकान से खरीदनी पड़ती है। अस्पताल में मुफ्त दवा, मुफ्त ऑपरेशन, अल्ट्रासाउंड और कई जरूरी जांच मुफ्त करने का जो दावा किया जा रहा है, वह झूठा साबित हो रहा है। छोटा अस्पताल हो या बड़ा, ईमानदारी से जांच की जाए तो बड़ी गड़बडिय़ां सामने आएंगी। जानकारों की मानें तो उक्त राशि या तो ठीक से खर्च नहीं हो पाती या फिर कागजी खानापूर्ति की कवायद में लैप्स हो जाती है। हालत ये है कि प्रसव के दौरान महिला को मिलने वाली सहायता राशि भी वितरित नहीं हो पा रही।

गर्भ के दौरान महिला का चार बार खून, वजन आदि की जांच करनी होती है। तत्पश्चात 360 कैल्शियम और 360 आयरन की गोलियां दी जाती है। लेकिन यहां अस्पतालों में कहीं-कहीं जांच तो होती है पर दवा नहीं दी जाती। मजबूरन बाजार से दवा लेनी पड़ती है। साधारण प्रसव के दौरान दवा के लिए 600 रुपये देने का प्रावधान है मगर विभागीय दिक्कतों के कारण इसमें भी खोट है। मरीज को पर्ची थमा दी जाती है कि बाहर से दवा ले लो। गर्भवती महिला और शिशु-जननी, दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति, नवजात बीमार बच्चे, कालाजार रोगी, सीनियर सिटीजन आदि को लाने-ले जाने की मुफ्त एंबुलेंस व्यवस्था है लेकिन देख-रेख के अभाव में करीब 12 एंबुलेंस कबाड़ हो गई तो पांच-छह एंबुलेंस पैसे के अभाव में गैरेज से अस्पताल तक का सफर तय नहीं कर पा रही। कुलमिलाकर स्वास्थ्य सेवाएं चरमराई हुई है।