ग्वालियर (मप्र)। बदलते समय में फार्मासिस्ट की भूमिका में भी बदलाव आया है। अमेरिका सहित कई देशों में फार्मासिस्ट डॉक्टर जैसी भूमिका अदा करते है। वहां वे इलाज के लिए आए बीमार व्यक्तियों से काउंसिलिंग करते हैं। साथ ही प्राइमरी स्तर पर उनका इलाज करते हैं। हालांकि हमारे देश में भी साउथ इंडिया में यह सब शुरू हो चुका है, लेकिन उसे पूरे भारत में लागू करने की जरूरत है। यह बात वर्जीनिया यूनिवर्सिटी से आए डॉ. राजेश बालाकृष्णन ने कही। वह जीवाजी यूनिवर्सिटी के जूलॉजी विभाग में हुए व्याख्यान में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। जेयू के बायोकैमिस्ट्री एंड फार्मेसी विभाग की ओर से डॉ. अब्दुल कलाम सीरीज के तहत इवेल्यूशन एंड एप्लीकेशन ऑफ फार्मेको- इकोनोमिक्स फार फार्मासिस्ट विषय पर हुए व्याख्यान में एक्सपर्ट ने फार्मेसी के स्कोप भी बताए। उन्होंने बताया कि फार्मेसी में फार्मा डी कोर्स को शुरू करने की जरूरत है, जिसके तहत फार्मासिस्ट को मरीजों के साथ इंटरेक्शन करना और उनकी काउंसिलिंग करना, प्राथमिक तौर पर ट्रीटमेंट करना जैसे विषयों पर ट्रेनिंग दी जाए। इस कोर्स से फार्मेसी में नए स्कोप के साथ-साथ स्टूडेंट्स को प्लेसमेंट भी मिलेगा। अमेरिका में असाध्य रोग वाले मरीजों को फार्मासिस्ट मेडिटेशन, योग आदि भी सिखाते हैं, जिससे दवा के साथ-साथ पॉजिटिव एनर्जी का भी बॉडी में संचार हो सके। इसे भारत में भी लागू करने की जरूरत है। फार्मासिस्ट की बदलती हुई भूमिका के माध्यम से वह डॉक्टर और मरीज के बीच एक ब्रिज का काम करेगा। प्राथमिक स्तर पर फार्मासिस्ट द्वारा इलाज करने से डॉक्टर्स पर काम का बोझ कम होगा। यह सिस्टम साउथ इंडिया में शुरू हो चुका है, लेकिन पूरे भारत में लागू करने की जरूरत है। फार्मासिस्ट की नई भूमिका के कारण लोकल स्तर पर बिना डिग्री वाले डॉक्टर्स की संख्या भी कम होगी। इससे लोगों की हेल्थ का प्रतिशत बढ़ेगा। इस अवसर पर डॉ. जीबीकेएस प्रसाद, डॉ. नलिनी श्रीवास्तव, प्रो. मुकुल तैलंग, डॉ. साधना श्रीवास्तव और डॉ. शांतिदेव सिसोदिया मौजूद रहे। अध्यक्षता वीसी प्रो. संगीता शुक्ला ने की।