रोहतक। कोरोना मरीजों पर काला पीलिया (हैपेटाइटिस सी) की दवा के परीक्षण के लिए पीजीआईएमएस रोहतक को मंजूरी मिल गई है। ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीजीसीआई) से दवा के क्लीनिकल परीक्षण की अनुमति मिलने के बाद अब 15 अप्रैल से संस्थान 170 मरीजों पर इसका प्रयोग शुरू करेगा। गौरतलब है कि पिछले साल पीजीआईएमएस के गेस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग के सीनियर प्रोफेसर डॉ. प्रवीण मल्होत्रा के नेतृत्व में प्रदेश के काला पीलिया के मरीजों पर कोरोना के असर को लेकर शोध किया गया था।
इसमें करीब 9 हजार मरीजों में से कोई भी कोरोना से ग्रस्त नहीं मिला था। इसमें से 3500 वर्तमान में दवा खा रहे हैं और बाकी अपना कोर्स पूरा कर चुके हैं। इसके बाद ही इस दवा के ट्रायल को बल मिला था। डॉक्टरों का मानना है कि कोरोना संक्रमण को खत्म करने के लिए यह दवा कारगर साबित हो सकती है। बता दें कि कोविड-19 के हरियाणा नोडल अधिकारी डॉ. ध्रुव चौधरी के अलावा तीन अन्य डॉक्टरों की टीम की देखरेख में यह परीक्षण चलेगा। फिलहाल संस्थान में लैब समेत अन्य बुनियादी ढांचे की स्थापना की प्रक्रिया जारी है। कोविड-19 के हरियाणा नोडल अधिकारी-डॉ. ध्रुव चौधरी ने बताया कि कोरोना मरीजों पर काला पीलिया की दवा के परीक्षण के लिए संस्थान को ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया की ओर से मंजूरी मिल गई है।
अब कोरोना के मरीजों को काला पीलिया की दवा दी जाएगी। 15 अप्रैल से टीम अपना काम शुरू कर देगी। उम्मीद है कि दवा कोरोना के मरीजों के लिए कारगर साबित होगा। शोध के बाद पूरी स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। पीजीआईएमएस ने पिछले साल जून में परीक्षण के लिए प्रस्ताव भेजा था, जिस पर करीब 9 माह बाद अब मंजूरी मिली है। बिजनेस इनोवेशन रिसर्च इनिशिएटिव (बीआईआरएसी) की ओर से वित्त पोषित इस परियोजना में पीजीआईएमएस की टीम डायग्नोस्टिक परीक्षण करेगी, जबकि सांख्यिकीय परीक्षण पुणे में नेशनल केमिकल लैब करेगी।
रिसर्च करने वाले टीम के सदस्यों में पीजीआईएमएस के डॉ. पवन, डॉ. एनसी गुप्ता और टीकाकरण की नोडल अधिकारी डॉ. सविता शामिल हैं। परीक्षण के दौरान मरीजों की हर गतिविधि पर नजर रखी जाएगी। मरीजों के अलग-अलग ग्रुप बनाए जाएंगे। कोरोना के 70-70 मरीजों को काला पीलिया की दवा दी जाएगी और 30 को यह दवा नहीं दी जाएगी। इन मरीजों को अलग से वार्ड में रखा जाएगा। इसमें देखा जाएगा कि किस मरीज पर क्या असर रहता है। जिनको दवा नहीं दी गई, उनके स्वास्थ्य में क्या बदलाव रहे। दवा के प्रभाव के अध्ययन के साथ-साथ यह भी शोध का विषय होगा कि क्या जिस रोगी पर दवा का परीक्षण किया गया है, उसने कोई अन्य गंभीर जटिलता विकसित तो नहीं की है।