कोविड के मरीजों को रेमडेसिविर देने की व्यवस्था में ड्रग विभाग के फेल होने के बाद चिकित्सा विभाग के आला अधिकारियों ने इसकी जिम्मेदारी ली है। कालाबाजारी और 30 से 40 हजार रुपए में एक इंजेक्शन देने के भास्कर के खुलासे के बाद अब विभाग ने रेमडेसिविर के लिए नई गाइडलाइन जारी की है।

प्रदेश के अस्पतालों में कोरोना वार्ड में प्रतिदिन भेजे जाने वाले इंजेक्शन्स पर अब संबंधित मरीज का नाम, आईपीडी नंबर एवं तिथि अंकित कर नर्सिंग स्टॉफ को दिया जाएगा। साथ ही इंजेक्शन के लगने के बाद इनके आउटर कार्टन समेत खाली वायल को अस्पताल पर नियुक्त नोडल ऑफिसर से वेरिफिकेशन के बाद पूर्णतया नष्ट करवाया जाएगा ताकि इनकी चोरी या दुरुपयोग पर अंकुश लगाया जा सके।

चिकित्सा सचिव सिद्धार्थ महाजन ने बताया कि अस्पताल के डॉक्टरों द्वारा मरीजों के अटेन्डेन्ट को व्यक्तिगत रूप से इंजेक्शन खरीदकर लाने के लिए भी प्रिसक्रिप्शन नहीं दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि अस्पताल में भर्ती मरीजों के उपयोग के लिए रेमडेसिविर इंजेक्शन की खरीद की प्रक्रिया अब केवल अस्पताल के स्तर पर की जाएगी।

कालाबाजारी रोकने के लिए बनाई टीम ने गुरुवार को सी के बिडला हॉस्पिटल का निरीक्षण किया। अस्पताल के नावेद अहमद द्वारा रेमडेसिवीर इंजेक्शन की कालाबाजारी करते हुए पकड़ा गया था। नावेद से संबंधित प्रकरण में जांच के लिए संबंधित थाना को सूचना दी गई है। दूसरी ओर कालाबाजारी कर रेमडेसिविर बेचने वाले दोनों युवक गायब हो गए।

बड़ा सवाल : ड्रग विभाग की टीमें क्या कर रही हैं
रेमडेसिविर की किल्लत के दौरान शहर में जगह-जगह ब्लेक में यह बेची जा रही है। ऐसा भी नहीं कि विभाग के अधिकारियों को यह जानकारी नहीं। यहां तक कि जानकारी देने के बाद भी ड्रग विभाग के उच्चाधिकारियों ने कोई कार्रवाई नहीं की।

ड्रग कंटाेलर के अलावा ब्लेक मार्केंटिग रोकने के लिए बनाई गई टीम भी अब संदेह के घेरे में है। वजह यह कि कमेटी में ड्रग विभाग के अधिकारियों के अलावा उसमें केमिस्ट एसोसिएशन के पदाधिकारी ही शामिल कर लिए गए। अब सवाल यह उठता है कि जब मेडिकल से जुड़े निजी लोगों को ही ब्लैक मार्केटिंग रोकने की जिम्मेदारी दे दी गई तो वह कितनी कारगर होगी, यह तय है।