तिरुवनंतपुरम (केरल)। मेडिकल स्टोर संचालक द्वारा मरीज को गलत दवा देने पर 1.5 लाख रुपये जुर्माना लगाया गया है। यह जुर्माना जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने लगाया है।
सेवा में कमी और अनुचित व्यापार व्यवहार
जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, तिरुवनंतपुरम (केरल) के अध्यक्ष पी.वी. जयराजन (अध्यक्ष), प्रीता जी नायर (सदस्य) और विजू वीआर (सदस्य) की खंडपीठ ने सेवा में कमी और अनुचित व्यापार व्यवहार के लिए उत्तरदायी ठहराया। इसके चलते आयोग ने एसटीवी मेडिकल एंड सर्जिकल मेडिकल कॉलेज को डॉक्टर द्वारा निर्धारित दवा से अलग दवा बेचने के लिए शिकायतकर्ता को 1,05,000 रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया।
ये है मामला
स्वास्थ्य सेवा विभाग में रेडियोग्राफर शिकायतकर्ता सुभा बी ने जोड़ों के दर्द और सूजन की शिकायत हुई। इसके लिए उन्होंने एक जनरल फिजिशियन और रुमेटोलॉजिस्ट डॉ. जैकब एंटनी से चिकित्सा सलाह ली। डॉक्टर ने मरीज को स्पॉन्बिलोपिक गठिया के इलाज की दवा लेने को कहा। पंद्रह दिनों के लिए टी मिमोड 25 मिलीग्राम सहित छह दवाओं का एक सेट निर्धारित किया गया। शिकायतकर्ता ने उसी दिन एसटीवी मेडिकल एंड सर्जिकल्स से 386 रुपये में निर्धारित दवाएं खरीदीं। दो सप्ताह तक इन दवाओं का सेवन करने के बाद भी उन्हें कोई राहत नहीं मिली।
जिला उपभोक्ता आयोग का दरवाजा खटखटाया।
इस पर पीडि़त ने जिला उपभोक्ता आयोग, कोट्टायम (केरल) का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट के आदेश पर पीडि़त की दोबारा जांच की गई। जांचके बाद, डॉक्टर ने दवाओं में से एक को डी-राइज के साथ बदल दिया। अतिरिक्त दवाएं चार सप्ताह तक जारी रखने की सलाह दी। शिकायतकर्ता ने उसी मेडिकल स्टोर से 289 रुपये में नई निर्धारित दवाएं खरीदीं। लेकिन शिकायतकर्ता को अपनी स्थिति में कोई सुधार नहीं दिखा। उसने लगभग 15 दिन बाद ,मेडिकल स्टोर से फिर से दूसरी बार दवाएं खरीदी। लेकिन, इस बार शिकायतकर्ता को सिरदर्द और चक्कर आने जैसे नए लक्षण दिखने लगे।
डॉक्टर की पर्ची से अलग दी दवा
शिकायतकर्ता फिर से डॉक्टर के पास गया और उसे उच्च रक्तचाप का पता चला। डॉक्टर ने दवाओं में कुछ बदलाव किए। शिकायतकर्ता ने उसी मेडिकल से टैब संप्राज सहित अन्य निर्धारित दवाएं खरीदीं। बाद में, उसे पता चला कि मेडिकल ने उन्हें गलत ताकत की दवा दी। जैसे कि टैब सम्प्राज़ 40 मिलीग्राम के बजाय 20 मिलीग्राम। शिकायतकर्ता ने डॉक्टर के पर्चे और मेडिकल स्टोर द्वारा जारी दवा बिलों को देखा। पता चला कि डॉक्टर द्वारा निर्धारित टैब मिमोड 25 मिलीग्राम, के बजाय मेडिकल स्टोर ने पिछली सभी खरीदों में लगातार टैब निमोडिपिन 30 मिलीग्राम को दिया था।
गलत दवा से मरीज को हुआ नुकसान
परेशान शिकायतकर्ता ने डॉ. शनवास से सलाह ली। डॉक्टर ने टैब निमोडिपिन 30 मिलीग्राम की अनावश्यक प्रयोग की पुष्टि की। यह बाद में रोगी के लिए दुष्प्रभाव का कारण बना। परेशान शिकायतकर्ता ने जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, तिरुवनंतपुरम की शरण ली। शिकायत दर्जे कराने पर भी मेडिकल स्टोर संचालक जिला आयोग के समक्ष पेश नहीं हुआ। उसके खिलाफ एकतरफा कार्यवाई की गई।
दोनों गोलियां अलग-अलग मर्ज की
जिला आयोग ने डॉ. शानवास की दलील पर कहा कि मेडिकल स्टोर द्वारा शिकायतकर्ता को दी गई दवाएं डॉक्टर द्वारा उन्हें लिखी गई दवाओं से अलग थीं। आयोग ने माना कि मिमोड का उपयोग रूमेटोइड गठिया के इलाज में किया जाता है। इसके विपरीत, निमोडिप को रक्तस्राव के बाद मस्तिष्क को और नुकसान के इलाज और रोकने के लिए एक दवा के रूप में निर्धारित किया जाता है।
आमतौर पर मस्तिष्क रक्तस्राव के बाद निर्धारित किया जाता है। दो गोलियों के उद्देश्य अलग-अलग थे। ये पूरी तरह से अलग-अलग इलाज के लिए इस्तेमाल किए गए थे। शिकायतकर्ता ने लगभग दो महीने तक निमोडिप गोलियां खरीदीं और उनका सेवन किया।
डॉक्टर की प्रिस्क्रिप्शन जरूरी
डॉ. शानवास ने गवाही दी कि निमोडिप मस्तिष्क के चारों ओर रक्तस्राव से जुड़ी गंभीर स्थितियों के लिए निर्धारित किया गया था। इसे अनुसूची एच दवा के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इसमें वितरण के लिए डॉक्टर की प्रिस्क्रिप्शन जरूरी होती है।
मेडिकल स्टोर संचालक आयोग में नहीं हुआ पेश
मेडिकल स्टोर की तरफ से आयोग में कोई पेश नही हुआ। इसके चलते जिला आयोग ने शिकायतकर्ता के साक्ष्य को चुनौती नहीं दी। आयोग ने सेवा में कमी और अनुचित व्यापार व्यवहार के लिए मेडिकल स्टोर को उत्तरदायी ठहराया। जिला आयोग ने मेडिकल स्टोकर संचालक को दोषी मानते हुए शिकायतकर्ता को मुआवजे के रूप में एक लाख रुपये और केस की लागत के लिए 5,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया है।