नई दिल्ली। एचआईवी/एड्स की दवाओं का ब्रेन ट्यूमर से पीडि़त मरीजों के ऊपर परीक्षण किया जा रहा है। दरअसल, ब्रेन ट्यूमर रिसर्च सेंटर ऑफ एक्सीलेंस विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक इस परीक्षण के जरिए यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या एंटी-रेट्रोवायरल रिटोनावीर और लोपिनवीर जैसी दवाओं का इस्तेमाल न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस 2 के रोगियों के लिए किया जा सकता है।
ब्रिटेन स्थित प्लायमाउथ विश्वविद्यालय ने बताया कि एचआईवी (मानव इम्यूनोडिफीसिअन्सी वायरस) और एड्स (अधिग्रहित इम्युनोडिफीसिअन्सी सिंड्रोम) से निपटने के लिए विकसित दवाओं का पहली बार मस्तिष्क ट्यूमर वाले कई मरीजों पर परीक्षण किया जा रहा है। गौरतलब है कि इन्हेरीटेड जेनेटिक कंडीशन के कारण श्वाननोमा (जिसमें ध्वनिक न्यूरोमा शामिल है) ईपेंडीमोमा और मेनिंगिओमा जैसे ट्यूमर उत्पन्न होते हैं। यह मस्तिष्क के चारों ओर की झिल्ली पर विकसित होते हैं।
परीक्षण का नेतृत्व कर रहे प्रोफेसर ओलिवर हैनिमैन का कहना है कि जेनेटिक रोगियों के लिए यह एनएफ2 से संबंधित ट्यूमर के लिए प्रणालीगत उपचार की दिशा में पहला कदम हो सकता है। इसमें कई ट्यूमर विकसित हो जाते हैं। उन रोगियों के लिए भी जिनमें एक बार एनएफ2 म्यूटेशन हुआ और परिणामस्वरूप इनमें ट्यूमर विकसित हो गया है।
बड़ी उपलब्धि होगी साबित
प्रो. हैनिमैन ने कहा कि यदि शोध सफल हो जाता है और परिणाम सकारात्मक मिलते हैं तो यह उन स्थिति वाले रोगियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण बदलाव होगा, जिनके लिए अब तक कोई प्रभावी इलाज नहीं है। एक साल तक चलने वाले इस परीक्षण के दौरान मरीजों को दोनों दवाओं के साथ 30 दिनों के उपचार से पहले ट्यूमर बायोप्सी और रक्त परीक्षण से गुजरना होगा। इसके बाद उन्हें एक और बायोप्सी और रक्त परीक्षण से गुजरना होगा। इससे यह पता लगाया जा सकेगा कि दवा का संयोजन ट्यूमर कोशिकाओं में प्रवेश करने में कामयाब रहा या नहीं। उसका कोई प्रभाव रोग पर पड़ा है या नहीं।