नई दिल्ली। स्वदेशी एंटीबायोटिक विकसित करने में भारत को सफलता मिली है। पहली स्वदेशी सुपर एंटीबायोटिक नेफिथ्रोमाइसिन विकसित की गई है। यह दवा उन संक्रमणों पर प्रभावी पाई गई है, जिन पर एंटीबायोटिक काम नहीं कर रहीं।
कैंसर और डायबिटीज के गंभीर मरीजों में संक्रमण के खिलाफ इस एंटीबायोटिक ने असर दिखाया है। केंद्रीय विज्ञान राज्य मंत्री डा. जितेंद्र ङ्क्षसह ने बताया कि यह भारत में विकसित पहला स्वदेशी एंटीबायोटिक मालिक्यूल है। यह पूरी तरह चिकित्सकीय रूप से मान्य है।
स्वास्थ्य क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में इसे एक बड़ी छलांग माना जा रहा है। नेफिथ्रोमाइसिन को विकसित करने में 14 वर्षों की मेहनत लगी। वैज्ञानिक परीक्षणों में यह एजिथ्रोमाइसिन से 10 गुना ज्यादा प्रभावी साबित हुई।
दावा किया गया है कि यह दवा गंभीर निमोनिया जैसे संक्रमणों के इलाज में केवल तीन दिन में परिणाम देती है। इस एंटीबायोटिक के ट्रायल में 97 प्रतिशत मरीजों में सकारात्मक परिणाम मिले।
यह दवा स्ट्रेप्टोकोकस बैक्टीरिया पर अत्यधिक प्रभावी है, जो निमोनिया के 33 प्रतिशत मामलों का कारण होता है। नेफिथ्रोमाइसिन को मुंबई स्थित वाकहार्ट लिमिटेड ने जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) तथा बीआइआरएसी के सहयोग से तैयार किया है।