नई दिल्ली। 343 दवाओं की बिक्री पर रोक लगाई जा सकती है। अगर रोक लगाई जाती है तो वॉकहार्ट, एल्केम लैब्स, सिप्ला, सन फार्मा जैसे 6,000 ब्रांड्स पर इसका असर पड़ेगा। ड्रग टेस्टिंग एडवाइजरी बोर्ड यानी डीटैब ने जांच में 349 में से 343 दवाओं को असुरक्षित पाया है। गौरतलब है कि साल 2016 और 2017 में स्वास्थ्य मंत्रालय ने इन दवाओं पर प्रतिबंध लगाया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इन दवाओं के प्रभाव का दोबारा अध्ययन करने के लिए डीटैब को निर्देश दिया था। डीटैब देश में दवा की गुणवत्ता और प्रभाव का अध्ययन करने वाली और निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था है। इन 343 फिक्स्ड डोज कम्बीनेशन (एफ.डी.सी.) का बाजार करीब 20 से 22 अरब रुपए का है। जून में इनकी वृद्धि दर 4.7 प्रतिशत रही, जबकि बाकी घरेलू दवा बाजार 8.6 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ा। बता दें कि एफ.डी.सी. दवा वह होती है जिसमें 2 या उससे अधिक सक्रिय तत्व एक निश्चित खुराक अनुपात में होते हैं। एक शीर्ष सरकारी अधिकारी ने कहा कि डीटैब जल्द ही अपनी रिपोर्ट स्वास्थ्य मंत्रालय को सौंपेगा।

मार्च 2016 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने चंद्रकांत कोकटे समिति की सिफारिशों के आधार पर 349 एफ.डी.सी. पर प्रतिबंध लगा दिया था। समिति ने पाया था कि ये दवाएं अव्यावहारिक हो गई हैं और स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं। अगर प्रतिबंध लगता है तो इससे फैंसेडिल (ऐबट), टिक्सीलिक्स (ऐबट), ग्लूकोनॉर्म पीजी (ल्यूपिन), एसोक्रिल डी (ग्लेनमार्क), सॉल्विन कोल्ड (इप्का), डी कोल्ड टोटल (पारस फार्मा) आदि ब्रांड प्रभावित होंगे। प्रतिबंध का सबसे ज्यादा असर ऐबट पर पड़ेगा, जिसका इन एफ.डी.सी. में करीब 5.45 अरब रुपए का निवेश है। इस बारे में कम्पनी ने कहा कि उसे डीटैब की तरफ  से आधिकारिक पत्र का इंतजार है। बाजार शोध कम्पनी ए.आई.ओ.डी.सी. अवाक्स के आंकड़ों के मुताबिक इन दवाओं में मैकलॉयड फार्मा का 2.95 अरब रुपए और मैनकाइंड फार्मा का 1.34 अरब रुपए का निवेश है। अलबत्ता कई कम्पनियों ने प्रतिबंध की संभावना को देखते हुए इन दवाओं को भारतीय बाजार से हटा दिया है।