अमृतसर। पीसीए के राज्य पदाधिकारियों ने दवा विक्रेताओं के उत्पीडऩ व बदनामी के विरोध में अपना रोष प्रदर्शन के दौरान कैंडल मार्च निकाल कर गांधीगिरी का परिचय दिया और जिला एवं राज्य प्रशासन सरकार को मांगों के ज्ञापन समय रहते दे दिए थे ताकि दवा विक्रेताओं का उत्पीडऩ बंद किया जाए। इसमें सीधा पुलिस या अन्य सरकारी अधिकारियों का दवा की दुकानों पर निरीक्षण अमान्य है। यह कार्य औषधि प्रशासन का है, उन्हें ही करने दें। जिस पर सरकार ने कोई तवज्जो नहीं दी। फलस्वरुप 26 जुलाई को राज्यभर में जिला स्तर पर कैंडल मार्च निकाला गया । 27 जुलाई को जिला स्तर पर बड़ी संख्या में दवा विक्रेताओं ने अपने प्रतिष्ठान बंद करके प्रशासन को इस बारे चेताया कि अपने जारी किए निर्देशों पर पुनर्विचार करें।
पीसीए के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष जीएस चावला तथा राज्य महासचिव सुरेंद्र दुग्गल ने मेडिकेयर न्यूज़ से बात करते हुए कहा कि उनका लक्ष्य आम जनता को परेशान करना नहीं है। वह सरकार से मात्र दवा विक्रेताओं के मान-सम्मान की बात कर रहे हैं। अत: सरकारी तंत्र दवा व्यवसाइयों के प्रतिष्ठानों पर पुलिस तथा अन्य के द्वारा निरीक्षण प्रणाली को तुरंत बंद करने के आदेश जारी करें। हमें अपने संबंधित विभाग ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट के अधीन अपने अधिकारियों के दिशा निर्देशों पर कार्य करने दें, वह वही हमारा निरीक्षण करें। इस बारे राज्य औषधि नियंत्रक प्रदीप मटटू ने कहा कि दवा व्यवसाइयों की मांगें उनके अनुसार ठीक हो सकती हैं परंतु विभागीय एवं राज्य सरकार के नियमानुसार दवा व्यवसाइयों की मांगें न्यायोचित तर्कसंगत नहीं है। यदि कोई भी दवा व्यवसाई नशे का कारोबार करता है तो कोई भी संगठन का पदाधिकारी या दवा व्यवसाई विभाग एवं सरकार को सूचित नहीं करता। ऐसे में सरकार द्वारा अन्य तंत्रों के माध्यम से कार्यवाही की जाती है, जिस पर विभाग की उपस्थिति भी दर्ज करवाई जाती है।