नई दिल्ली। एंटीबायोटिक मेडिसीन 40 फीसदी मरीजों पर असर दिखाने में नाकाम साबित हो रही है। यह रिपोर्ट इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) ने जारी की है। इस रपट पर डब्ल्यूएचओ ने चिंता जाहिर की है।
गौरतलब है कि बीसवीं सदी में सर एलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने पहली एंटीबायोटिक के रूप में पेनसिलिन की खोज की थी। इस खोज ने लाखों मरीजों को जीवनदान दिया। इसके बाद पूरी दुनिया में एंटीबायोटिक का ऐसा चलन चला कि हर मर्ज का इलाज एंटीबायोटिक में खोजा जाने लगा।
अब ज्यादा उपयोग से अब इसके विपरीत परिणाम सामने आने लगे हैं। बेवजह एंटीबायोटिक के सेवन से शरीर में मौजूद जीवाणु अब बैक्टीरिया के रूप में शक्तिशाली बन गए हैं। इन बैक्टीरिया पर संक्रमण रोकने वाली सभी दवाएं बेअसर साबित होने लगी हैं। दुनियाभर में दस लाख संक्रमित मरीजों की मौत सिर्फ इसलिए हो रही है कि उपलब्ध एंटीबायोटिक बेअसर साबित हो रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रपट कहती है कि एंटीबायोटिक दवाओं के बेअसर होने के कारण 2050 तक विश्व में मौत की दर एक करोड़ प्रतिवर्ष तक पहुंच जाएगी।
एंटीबायोटिक दवा देने पर पूरी तरह रोक लगाएं : डब्ल्यूएचओ
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कई देशों को चेतावनी जारी की है कि बगैर स्वास्थ्य परीक्षण के मरीजों को एंटीबायोटिक दवा देने पर पूरी तरह रोक लगाई जानी चहिए। अन्यथा हालात बेकाबू हो सकते हैं। मौजूदा स्थिति में चालीस फीसद मरीजों पर एंटीबायोटिक दवाओं ने असर दिखाना बंद कर दिया है। निमोनिया, टाइफाइड और मूत्र संक्रमण में अधिकांश एंटीबायोटिक दवाएं अब निष्क्रिय साबित हो रही हैं। बगैर चिकित्सक की सलाह के एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग मरीज को नहीं करना चहिए।