नई दिल्ली। भारतीय दवा निर्यात के लिए अब अमेरिका के अलावा अन्य देशों की तलाश की जाने लगी है। यह कदम अमेरिकी प्रशासन द्वारा दवा आयात पर भारी शुल्क लगाए जाने की आशंका के चलते उठाया जा रहा है।
बता दें कि भारतीय जेनेरिक दवा का अमेरिका सबसे बड़ा बाजार है। अप्रैल से फरवरी के दौरान भारत ने अमेरिका को 9.8 अरब डॉलर की दवा निर्यात की है। वित्त वर्ष 2024-25 में अमेरिका को दवा निर्यात 14 फीसदी बढ़ा है। फार्मास्यूटिकल एक्सपोर्ट्स प्रमोशन काउंसिल (फार्मेक्सिल) के वाइस चेयरमैन और किलिच ड्रग्स के पूर्णकालिक निदेशक भाविन मेहता ने कहा कि नए बाजारों में पहुंचना बहुत आसान नहीं होता है।
उन्होंने कहा कि नए बाजार में जगह बनाने में डेढ़ से दो साल लग जाते हैं। अगर निर्यातक आज यु्द्ध स्तर पर लगें तो यह 2026 के पहले नहीं हो पाएगा। फार्मेक्सिल ने निर्यात बाजारों का जोखिम के आधार पर मूल्यांकन करना शुरू कर दिया है। निर्यातकों और सरकारी अधिकारियों के बीच बैठक इस महीने में होने की संभावना है। गुजरात के एक निर्यातक ने बताया कि इसका उद्देश्य हमारे निर्यात कारोबार को जोखिम मुक्त करना है और साफतौर पर अफ्रीका व लैटिन अमेरिका पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
हालांकि बड़ी दवा कंपनियां भी कारोबार का जोखिम कम करने और उभरते बाजारों में कारोबार बढ़ाने की कोशिश करेंगी। छोटे और मझोले आकार के निर्यातकों के लिए स्थिति आसान नहीं है कि बड़े कारोबारियों के साथ प्रतिस्पर्धा की जा सके। गौरतलब है कि भारत के लिए अमेरिका, यूरोप और अफ्रीका बड़े निर्यात क्षेत्र हैं, जहां देश के कुल निर्यात का 70 फीसदी हिस्सा जाता है।