नई दिल्ली। एक दवा की कीमत 10 गुना अधिक तक होने का मामला प्रकाश में आया है। इस संबंध में एनपीपीए में आपत्तियां दर्ज कराईं गई हैं। शेड्यूल ड्रग में भी पांच से दस गुना तक का लाभ कमाया जा रहा है। यह मरीजों के लिए उत्पीडऩ ही है। इस पर नेशनल ड्रग प्राइसिंग कंट्रोल अथॉरिटी (एनपीपीए) को कार्रवाई के लिए कहा गया है।

यह है मामला

आगरा के चिकित्सक और एक्टिविस्ट डॉ. संजय कुलश्रेष्ठ ने नई दिल्ली में हुई नेशनल फार्मा प्राइसिंग अथॉरिटी की बैठक में मंत्रालय के सामने आपत्तियां दर्ज कराईं। डॉ. कुलश्रेष्ठ ने दिल्ली हाईकोर्ट में जेनेरिक और ब्रांडेड दवाओं के दामों और गुणवत्ता में अंतर को लेकर जनहित याचिका दायर की हुई है।

इसमें हाईकोर्ट ने मंत्रालय के साथ बैठक के आदेश दिए थे। इसी मामले में एनपीपीए के सदस्यों महावीर सैनी, अपर्णालाल और दीपक कुमार के साथ उन्होंने बैठक में हिस्सा लिया। यहां उन्होंने दवाओं की कीमतों में अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस पर आपत्तियां दर्ज कराई और सबूत भी दिए।

डॉ. कुलश्रेष्ठ ने कमेटी को बताया कि ड्रग प्राइसिंग कंट्रोल ऑर्डर 2013 कानून में साफ है कि रिटेलर को 16 फीसदी से ज्यादा मुनाफा लेने की इजाजत नहीं है। उन्होंने कहा कि 5000 रुपये के एमआरपी वाली दवा रिटेलर 500 रुपये दे रहे हैं। कई जगह मोनोपॉली अपनाई जा रही है। चिकित्सक की लिखी दवा पूरे शहर में सिर्फ एक दुकान पर ही मिल रही है। इसके मनमाने दाम लिए जा रहे हैं, जबकि जेनेरिक ड्रग की कीमत उससे 90 फीसदी तक कम होती है। डॉ. कुलश्रेष्ठ ने बताया कि एक ही कंपनी की एक दवा दो अलग-अलग नाम से बेची जा रही है।

एक की कीमत 600 रुपये है तो दूसरी की 3000 रुपये है। हेल्थ इंश्योरेंस वाले मरीजों के मामले में इस्तेमाल होने वाली दवाएं अलग फार्मेसी से बेची जा रही हं। ये गुणवत्ता में कम हैं, लेकिन उनकी कीमत ज्यादा वसूली जा रही है। यह प्रैक्टिस तत्काल बंद होनी चाहिए।