नई दिल्ली। नकली कैंसर दवा सप्लायरको जमानत देने से दिल्ली उच्च न्यायालय ने इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि वह इस गिरोह का सरगना है और साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ की संभावना ज्यादा है। व्यक्ति द्वारा कथित तौर पर बेचे जा रहे इंजेक्शन की प्रभावशीलता कम थी, इसलिए ऐसी संभावना है कि जिन रोगियों को ये इंजेक्शन दिए गए थे, उनमें कैंसर बढ़ सकता है या कैंसर दोबारा हो सकता है, जो उनकी मृत्यु का कारण भी बन सकता है।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा कि अन्य सह-आरोपियों को जमानत देने का मुख्य कारण यह है कि वे केवल मोहरे थे, जबकि याचिकाकर्ता पूरे गिरोह का सरगना है। उन्होंने कहा कि नकली इंजेक्शन मुख्य रूप से याचिकाकर्ता द्वारा बनाए और बेचे जा रहे थे। ये घटिया गुणवत्ता के पाए गए हैं और उपयोग के लिए हानिकारक हैं।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता आरोपी विफिल जैन को फार्मेसी के क्षेत्र का अनुभव है और वह जानबूझकर जीवन को खतरे में डालने वाली गतिविधि में लिप्त था। इस समय उसे रिहा करने से सबूतों के साथ छेड़छाड़ हो सकती है। याचिकाकर्ता के वकील ने अन्य सह-आरोपियों के साथ समानता के आधार पर जमानत मांगी थी, जिन्हें पहले ही राहत दी जा चुकी है।
बता दें कि इस वर्ष मार्च में दिल्ली पुलिस को सूचना मिली थी कि जैन कैंसर के नकली इंजेक्शन तैयार करने के लिए अपने सहयोगी परवेज मलिक से खाली शीशियां और अन्य कच्चा माल खरीद रहा है। पुलिस टीमें गठित जैन और एक अन्य व्यक्ति को कथित तौर पर मोती नगर स्थित एक फ्लैट से खाली शीशियों में कुछ तरल पदार्थ भरते समय पकड़ा गया था।