कानपुर। दवाओं को ब्रांड नहीं बल्कि उसमें प्रयोग किए गए तत्व यानी मॉलीक्यूल से पहचाना जाएगा। ये कवायद मरीजों को सस्ती दवा आसानी से मुहैया कराने के लिए की जा रही है। कंपनी द्वारा रखा गया नाम ब्रांड कहा जाता है जबकि मॉलीक्यूल नाम दवा का वैज्ञानिक नाम होता है। ऐसे में ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया ने फार्मा कंपनियों को दवा का वैज्ञानिक नाम बड़ा लिखने के निर्देश दिए हैं ताकि दवा की पहचान करने में आसानी हो।
गौरतलब है कि दवा कंपनियां बाजार में ब्रांडेड और मॉलीक्यूल नाम से दवाएं मुहैया कराती हैं। ब्रांडेड दवाओं का प्रमोशन करने के लिए बाकायदा प्रतिनिधि रखे जाते हैं, जिन्हें मेडिकल स्टोर से महंगे दामों पर खरीदना पड़ता है, जबकि मॉलीक्यूल नाम से दवाओं की आपूर्ति सरकारी अस्पतालों में होती है। उदाहरण के लिए बुखार की दवा कालपॉल एक कंपनी का ब्रांडनेम है। इसका मॉलीक्यूल पैरासिटामॉल है। कमोवेश यही स्थिति सभी मॉलीक्यूल की है। एक ब्रांडनेम की दवा दूसरी जगह नहीं मिलती है। ऐसे में दूर-दराज से इलाज के लिए आने वाले मरीज दवा के लिए परेशान होते हैं। मॉलीक्यूल नाम को प्रमोट करने से मरीज को आसानी से कहीं भी दवा मिल सकेगी।  एक ही मॉलीक्यूल से निर्मित दवा के रेट कंपनियों ने अलग-अलग कर रखे हैं। मालीक्यूल नाम से दवाएं बिकने पर मरीज डॉक्टर द्वारा लिखी गई दवा को कम दाम में दूसरी कंपनी से खरीद सकेंगे। प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र में मॉलीक्यूल नाम से दवा मिल रहीं हैं। जो ब्रांडेड से काफी सस्ती हैं। औषधि निरीक्षक अरविंद गुप्ता बताते हैं कि केंद्र सरकार का उद्देश्य मरीजों को सस्ती दवाएं मुहैया कराना है। प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र में मॉलीक्यूल नाम से दवाएं मिल रही हैं। आमजन में भ्रम दूर करने के लिए दवाओं के नए स्टॉक में ब्रांडनेम छोटे और मॉलीक्यूल नाम बड़े अक्षरों में लिखा आ रहा है।