पटना। आयुष औषधियों के लाइसेंस के लिए क्लीनिकल ट्रायल की जरूरत नहीं है बल्कि ग्रंथों व संहिताओं में मौजूद चिकित्सा परक साक्ष्य व प्रैक्टिकली तर्क ही काफी है। आयुष मंत्रालय ने इस संबंध में सर्कुलर जारी कर दिया है। सरकार का यह कदम निश्चित रूप से आयुर्वेद, होमियोपैथी, यूनानी व नेचरोपैथी-आयुष की औषधियों को तैयार करके लाइसेंस लेकर बाजार में दवाओं को उतारने की दिशा में काफी आसान होगा। पर यह सरलीकरण कितना सही, यह तो समय ही बताएगा। हालांकि इससे व्यापारी वर्ग में खुशी होगी। वैसे राज्य में छोटे-बड़े आयुष उद्योग की कंपनियां हैं। ये कंपनियां राज्य और बाहर भी आयुष औषधियों की सप्लाई करती हैं। आयुष मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय प्रवक्?ता डॉ.राकेश पांडेय का कहना है कि आयुष संहिताओं व ग्रंथों पर शक की गुंजाइश ही नहीं है पर बिना क्लीनिकली ट्रायल में सुखद परिणाम के बगैर आयुष की दवाओं को विश्वसनीय तरीके अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित नहीं किया जा सकता है।

पहले आयुष की कुछ गंभीर बीमारियों की दवा को क्लीनिकली स्थापित कर उसके रिपोर्ट संबंधित विभाग या फिर सरकार को देना पड़ता था। इसके बाद ही लाइसेंस मिलता था। जिससे केंद्र सरकार ने खत्म कर दिया है। डॉ. पांडेय की माने तो कुछ गंभीर बीमारियों की दवा भी आयुष में तैयार की जाती है। उन बीमारियों की दवा का क्लीनिकली ट्रॉयल होना चाहिए। यदि उच्च मापदंड या स्टैंडर्ड के अनुसार दवाएं तैयार नहीं होगी तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन दवाओं को स्वीकार करने में भी दिक्कत आ सकती है? गंभीर बीमारियों जैसे कैंसर आदि की दवा का क्लिनिकल ट्रायल होना चाहिए। इससे क्वालिटी बरकरार रखी जा सकती है। केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय की अवर सचिव शीला तिर्की ने इस बारे में सभी राज्य सरकार के लाइसेंसिंग ऑथोरिटी और ड्रग कंट्रोलर विभाग को सकुर्लर जारी किया है।