कोटा (राजस्थान)। मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना के तहत वर्ष 2017 में सप्लाई में आई खून पतला करने की एस्प्रिन गेस्ट्रो रेजिस्टेंट 75 एमजी टैबलेट जांच में घटिया पाई गई थी। इस दवा का ड्रग विभाग ने जनवरी 2018 में सैंपल लिया था और रिपोर्ट फरवरी-2019 में आई। इसी महीने ये दवा एक्सपायर भी हो गई। नतीजा यह हुआ कि रिपोर्ट आने से पहले ही 1.73 लाख टैबलेट मरीजों को बांट दी गई। अब दवा की गुणवत्ता ठीक नहीं होने के बावजूद संबंधित कंपनी को कोर्ट में भी फायदा मिलना तय है। अधिकतर मामलों में दवाइयों के सैंपल की रिपोर्ट एक-एक साल बाद आ रही है। ड्रग डिपार्टमेंट के पेंडिंग सैंपल्स की पड़ताल की तो पता चला कि कोटा के 300 से ज्यादा सैंपल जयपुर में पेंडिंग है। दो ड्रग इंस्पेक्टर तो ऐसे हैं, जिनके सैंपल की आज तक रिपोर्ट ही नहीं आई। जयपुर की लैब पर भार ज्यादा हुआ तो सरकार ने नई लैब खोलने की बजाय ड्रग इंस्पेक्टर्स के सैंपल लेने के टारगेट ही घटा दिए। पहले हर माह 6 सैंपल का टारगेट था, अब ये एक कर दिया है। जानवरों के घाव में यूज होने वाले पोटेशियम परमेंगनेट आईपी पाउडर का ड्रग विभाग ने जुलाई, 2018 में सैंपल लिया था। इसकी रिपोर्ट दिसंबर, 2018 में आई, जबकि इसी माह यह दवा एक्सपायर होनी थी। ड्रग इंस्पेक्टर प्रहलाद मीणा के 116, रोहिताश्व नागर के 120, उमेश मुखीजा व संदीप कुमार के 30-30 सैंपल की रिपोर्ट जयपुर में पेंडिंग है। मीणा व नागर के सैंपल कई माह पुराने हैं, जबकि शेष दोनों ड्रग इंस्पेक्टरों के नए हैं। असल में जैसे ही जयपुर की लैब से रिपोर्ट मिलती है और उसमें सैंपल फेल हो जाता है तो संबंधित निर्माता फर्म को यह अधिकार है कि वह उस सैंपल की दूसरी कॉपी की कोलकाता स्थित सेंट्रल ड्रग लैब में जांच कराए। सैंपल की रिपोर्ट मिलने के बाद उसे 28 दिन का समय दिया जाता है। अब जैसे फरवरी में एक्सपायर हो रही दवा की जयपुर से रिपोर्ट फरवरी में ही पहले सप्ताह में 5-6 तारीख को आई तो उक्त रिपोर्ट से निर्माता कंपनी को अवगत कराया जाएगा। कंपनी जानबूझकर एक्सपायरी के बाद अपील करेगी, क्योंकि उसके पास 28 दिन का अधिकार है। एक्सपायर होने के बाद दवा की जांच करने का कोई औचित्य नहीं रह जाता।