रायपुर। छत्तीसगढ़ दवा निगम का मलेरिया किट खरीदी में घोटाला सामने आया है। दवा निगम ने महाराष्ट्र की एक दवा कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए सभी नियम-कायदों को दरकिनार कर दिया। निगम ने नियम विरूद्ध जेम के माध्यम से मलेरिया टेस्ट किट का टेंडर पोर्टेबल मोबाइल किट के नाम से जारी किया। निगम ने इसके लिए ऐसे नियम एवं शर्तें तैयार की, जिससे एक ही कंपनी टेंडर प्रक्रिया में शामिल हो पाए। जारी टेंडर नोटिस में ही महाराष्ट्र की कंपनी वोक्सटर बायो लिमिटेड के लाइसेंस नंबर को अंकित किया गया। इससे सिर्फ एमएच/10/421 ड्रग लाइसेंसधारी कंपनी ही टेंडर प्रक्रिया में शामिल हो सकती थी। दूसरी गड़बड़ी यह कि भंडारक्रय नियमों के मुताबिक मेडिसिन या मेडिसिन किट की खरीदी जीइएम पोर्टल के माध्यम से नहीं की जा सकती। इसमें सिर्फ मेडिकल उपकरणों की ही खरीदी की जा सकती है। लेकिन दवा निगम ने सारे नियम तोडक़र कंपनी को लाभ पहुंचाया है। 12 करोड़ 14 लाख की मलेरिया किट की खरीदी की टेंडर प्रक्रिया महज 3 दिन में पूरी कर ली। 23 अगस्त को टेंडर जारी कर 27 अगस्त को बंद कर दिया गया। जबकि भंडार क्रय नियमों के मुताबिक 50 हजार से अधिक की निविदा के लिए 1 माह से अधिक का समय दिया जाता है। निगम ने ऐसी जल्दबाजी दिखाई कि टेंडर की कागजी प्रक्रियाएं महज 3 दिनों में पूरा कर 15 दिन के भीतर 100 प्रतिशत सप्लाई का वर्कऑर्डर जारी कर दिया। जबकि, नियम यह है कि जब तक 60 प्रतिशत की सप्लाई पूरी नहीं होती, बाकी का 40 प्रतिशत सामान की सप्लाई का ऑर्डर नहीं दिया जाता। अब तक कंपनी ने एक भी किट की सप्लाइ नहीं की है। जेम के माध्यम से टेंडर क्रमांक जीइएम/2018/बी/71755 दिनांक 23 अगस्त 2018 को 8 लाख पोर्टेबल मोबाइल टेस्ट किट के नाम से जारी किया था। कंपनी को महज 10 दिन के भीतर 100 प्रतिशत वर्कआर्डर जारी कर दिया गया। इसके बाद भी कंपनी ने एक किट की सप्लाई अब तक नहीं की है। जबकि 143 हजार किट सीजीएमएससी के गोदामों में पड़ी है। ओडिशा में मलेरिया किट की खरीदी ऐश्पेन डायग्नोस्टिक नाम की कंपनी से 115 रुपए 50 पैसे में की गई थी। लेकिन दवा निगम द्वारा स्वतंत्र प्रतिस्पर्धा नहीं कराने के कारण एक किट 36 रुपए 26 पैसे मंहगी पड़ रही है। लेकिन सीजीएमएससी इसी की खरीदी 151 रुपए 76 पैसा में कर रहा है। इस प्रकार 2 करोड़ 90 लाख 08 हजार रुपए ज्यादा देकर खरीदी की गई। इस संबंध में सीजीएमएससी के प्रबंध संचालक वी. रामाराव ने बताया कि एक ही कंपनी के लिए क्लोजर टेंडर जारी नहीं किया गया। कई कंपनियां आई थी, जिसने कम रेट भरा उसे टेंडर दिया गया है।