नई दिल्ली। आयुर्वेद ने रेड वाइन को दवा बताया है। ये भी बताया गया है कि रेड वाइन पीने से कई फायदें हो सकते है। दरअसल ड्रिंक और मेडिसिन दोनों के रूप में शराब हजारों वर्षों से प्रयोग में है। बता दें कि मॉडरेट वाइन हमारी हेल्थ के लिए कई तरह से लाभकारी बताई जाती है। लेकिन इसके अधिक सेवन से सेहत को हानि भी है। जब शरीर में शराब के इफेक्ट को लेकर चर्चा करते हैं तो दो कंपोनेंट्स यानी घटकों पर ध्यान की जरूरत है शराब और अंगूर से प्राप्त पौधों के गुण। इस आर्टिकल में हम आपको आयुर्वेद नजरिए से शराब पीने के फायदे बताते हैं।

भोजन के बाद शराब ग्लाइसेमिक प्रतिक्रिया को कम करती है। बताया जाता है कि एक हैवी मील के बाद ग्लाइसेमिक स्पाइक्स को 37 प्रतिशत तक कम कर देता है। बता दें कि भोजन के बाद ब्लड ग्लूकोज लेवल मधुमेह, सूजन और हृदय रोग से जुड़ा है। एक शोध में 12 फीसदी अल्कोहल बनाम 6 प्रतिशत अल्कोहल के साथ रेड वाइन के प्रभावों की तुलना की गई थी, जिसमें हेल्थ के लिए अच्छे रिजल्ट लगभग समान ही पाए गए थे। हालांकि, रेड और वाइट वाइन की नॉन डेजर्ट वेरायटीज में लगभग समान मात्रा में कैलोरी और अल्कोहल होती है, लेकिन इनके एंटीऑक्सीडेंट एक्टीविटीज में कुछ अंतर होते हैं।

आयुर्वेद शराब को एक दवा के रूप में देखता है और सलाह देता है कि इसका सेवन कम मात्रा में किया जाना चाहिए। आमतौर पर शराब की मूत्रवर्धक प्रकृति के कारण शरीर पर गर्म, सुखाने वाला प्रभाव पड़ता है। आयुर्वेद शराब का सेवन करने वालों को कुछ बातों को फॉलो करने की सलाह देता है जिनके बारे में यहां जिक्र किया गया है।

वात: डाइट में एयर क्वालिटी की एक्सेज जोड़ने के लिए नॉन-कार्बोनेटेड वाइन को चुनें और शैंपेन व moscato से बचें। इसके बजाय मीठी, फ्लैट वाइन को चुनना चाहिए। आपको प्लम यानी बेर से बनी शराब या स्वीड रेड वाइन का चयन करना चाहिए।

पित्त: पहले से ही गर्म और शुष्क स्वभाव वाले व्यक्ति को शराब का सेवन सावधानी से करना चाहिए। अगर वाइन का सेवन कर रहे हैं, तो 2-4 ऑउंस का लक्ष्य तय करें। ऐसे लोगों को कड़वी या कसैली वाइन चुनें।

कफ: रेड वाइन, सुस्त कफ पाचन तंत्र के लिए एक यूजफुल वेवरेज है। रेड वाइन की गर्माहट पाचन की आग को हल्का करने में मदद कर सकती है और साथ ही शरीर में अतिरिक्त नमी को भी सुखा सकती है।

रेड वाइन फरमेंटिड प्रोसेज के जरिए अंगूर के गूदे से लेकर उसके बाहरी हिस्से यानी स्किन वाला पार्ट से बनकर तैयार होती है। इसमें पॉलीफेनोल्स की मात्रा अधिक होती है जो कि एक प्रकार का एसिड है और मुख्य रूप से एंटीऑक्सिडेंट से जुड़ा होता है। अंगूर के पौधे बैक्टीरिया और कवक से लड़ने के लिए और पराबैंगनी (यूवी) विकिरण से बचाने के लिए रेस्वेराट्रोल, एक मजबूत एंटीऑक्सिडेंट का उत्पादन करते हैं। शोधकर्ता रेस्वेराट्रॉल के एंटी इन्फ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुणों का अध्ययन कर रहे हैं, लेकिन मनुष्यों के लिए इसके लाभों की जानकारी के लिए अभी अधिक शोध की आवश्यकता है।

रेड वाइन वाइट के विपरीत सिर्फ अंगूर के गूदे से बनाई जाती है। फर्मेंटेशन प्रोसेस के दौरान वाइट वाइन बनाने के लिए अंगूर की स्किन या कहें छिलके को अलग कर दिया जाता है। हालांकि पील अलग होने के बाद भी वाइ वाइन एंटीऑक्सिडेंट में समृद्ध होती है। लेकिन ग्रेप्स की स्किन अलग होने के बाद इसमें रेस्वेराट्रोल कम मात्रा में होती है जो कि रेड वाइन में इससे कहीं ज्यादा होता है। वाइट वाइन में रेड वाइन की तुलना में अधिक चीनी और सल्फाइट होते हैं। वाइट वाइन के सेवन के लाभों के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है।

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नोट- अगर आप वाइन का सेवन करते हैं तो आपका आयुर्वेद को बहुत थोड़ी मात्रा में पीने की सलाह देता है। वाइन का स्टैंडर्ड आयुर्वेदिक गिलास 2–4 oz. (0.07 से 0.11 लीटर) सर्विंग की सलाह देता है जो कि USDA डायट्री गाइडलाइन की 5 oz. सर्विंग से काफी कम है।