मुंबई। दवा उत्पादों की बिक्री पिछली कुछ तिमाहियों से एक अंक की दर से बढ़ी है। इसके लिए दवा निर्माता अर्थव्यवस्था में मंदी और घरेलू बाजार में गैर-ब्रांडेड जेनेरिक दवाओं की बढ़ती बिक्री को जिम्मेदार मान रहे हैं। आंकड़ों से पता चलता है कि दवा उत्पादों की बिक्री वृद्घि पिछले कुछ महीनों से उत्साहजनक नहीं रही है। एआईओसीडी अवाक्स के निदेशक अमीष माजुरेकर का कहना है कि भारतीय दवा बाजार (आईपीएम) में वृद्घि पिछले साल जुलाई से धीमी (2-3 प्रतिशत के दायरे में) रही है।
 अप्रैल के लिए, आईपीएम में बिक्री 2.8 प्रतिशत तक बढ़ी जबकि कीमतों में 5.2 प्रतिशत का इजाफा दर्ज किया गया। अप्रैल में समाप्त 12 महीने की अवधि के लिए, बिक्री वृद्घि 3.4 प्रतिशत पर रही जबकि कीमत 4.1 प्रतिशत तक बढ़ी। इसके अलावा, पिछले साल जुलाई से, गैर-कीमत नियंत्रित श्रेणी (नैशनल लिस्ट ऑफ एसेंशियल मेडिसिंस से अलग दवाओं) में कीमत वृद्घि ने हरेक तिमाही में एनएलईएम सेगमेंट में वृद्घि को मात दी है। गुजरात की एक बहुराष्ट्रीय दवा कंपनी के प्रवर्तक ने कहा कि अर्थव्यवस्था में मंदी की स्थिति है और कुल मिलाकर संकेत अच्छे नहीं हैं। लोग ज्यादा जरूरत होने पर ही दवाएं खरीद रहे हैं। उपभोक्ता मांग में कमी आने से फार्मा जैसे मजबूत उद्योगों में भी दबाव देखा जा सकता है।
 कुछ उद्योग विश्लेषकों का मानना है कि बिक्री में मंदी की अन्य वजह गैर-ब्रांडेड जेनेरिक में तेजी आना भी है। मुंबई की एक दवा कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि उन जेनेरिक दवाओं को लेकर जागरूकता बढ़ रही है जिन्हें आमतौर पर सरकारी चैनलों के जरिये बेचा जाता है। हालांकि इन दवाओं का बिक्री के संदर्भ में प्रभाव मुश्किल से ही पड़ रहा है, लेकिन इनकी वजह से बाजार से बिक्री कुछ हद तक प्रभावित हुई है। एडलवाइस ने अपनी एक ताजा रिपोर्ट में कहा है कि ब्रांडेड जेनेरिक के सस्ते विकल्पों को लेकर जागरूकता बढ़ रही है और ज्यादा तादाद में कंपनियां इनके लिए पहुंच उपलब्ध करा रही हैं  जिसका ब्रांडेड जेनेरिक की बिक्री वृद्घि पर प्रभाव पडऩा शुरू हो गया है।  ब्रोकरेज फर्म का मानना है कि जन औषधि योजना का राजस्व 2019 में सालाना आधार पर दोगुना होकर 300 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। मौजूदा समय में लगभग 5,000 जन औषधि स्टोर हैं और 2020 तक 2000 अन्य स्टोर खुलने की संभावना है। ये स्टोर ब्रांडेड दवाओं की तुलना में लगभग 50-90 प्रतिशत की छूट पर दवाएं बेचते हैं।
आकलनों से पता चलता है कि यदि प्रत्येक जन औषधि स्टोर 5 लाख रुपये की दवाएं बेचता है तो वर्ष 2020-21 तक इस योजना का राजस्व 600 करोड़ रुपये होगा। हालांकि दवा कंपनियों ने अपना मार्जिन सुरक्षित बनाने के लिए गैर-एनएलईएम श्रेणी पर ज्यादा ध्यान दिया है। एनएलईएम श्रेणी में थोक कीमत सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) के जरिये कीमत हर साल बदली जाती है। किसी वर्ष में डब्ल्यूपीआई नीचे आता है तो दवा कंपनियों को कीमतें घटानी होती हैं, लेकिन इसके परिणामस्वरूप बिक्री में तेजी आती है। वहीं गैर-एनएलईएम श्रेणी में कंपनियां एक साल में कीमतें 10 प्रतिशत तक बढ़ा सकती हैं।