यमुनानगर। स्थानीय प्लाईवुड फैक्ट्री के दो कर्मचारियों द्वारा भ्रूण लिंग जांच के धंधे में पकड़े जाने का मामला सामने आया है। स्वास्थ्य विभाग की टीम ने दोनों आरोपियों प्लाईवुड फैक्ट्री के प्रोडक्शन इंचार्ज और मुंशी को गिरफ्तार कर लिया है। इस पूरे खेल का मास्टरमाइंड एक सडक़ हादसे में घायल होने के चलते निजी अस्पताल में भर्ती है। जानकारी अनुसार ये लोग 15 हजार रुपए में लिंग जांच कराते थे। सोशल मीडिया व्हाट्सऐप्प के जरिये गर्भवती महिलाओं से सौदेबाजी करने के बाद एक नामी अल्ट्रासाउंड स्कैनिंग सेंटर में भेज देते थे। आरोपियों की पहचान जम्मू कॉलोनी में रह रहे प्लाईवुड फैक्ट्री के प्रोडक्शन इंचार्ज कमल और बिहार के मोतिहारी जिले के गांव बृंगूबेरिया के कृष्णा के रूप में हुई है। पीएनडीटी के नोडल अधिकारी डॉ. राजेश के मुताबिक उन्हें लिंग जांच गिरोह के बारे में सूचना मिली थी। एक महिला ने बताया कि वह 3 माह की गर्भवती है। उसके पास 2 बेटियां हैं। उनके गांव के समानंद ने बताया कि वह उसके गर्भ में पल रहे भ्रूण की लिंग जांच करा देगा। उसने 15 हजार रुपए मांगे। 10 हजार रुपए अल्ट्रासाउंड होने के बाद और 5 हजार रुपए रिपोर्ट के बाद देने थे। महिला ने इसकी सूचना स्वास्थ्य विभाग को दे दी।
समानंद ने महिला को प्राइवेट अल्ट्रासाउंड पर बुलाया। स्वास्थ्य विभाग की टीम ने उसे 10 हजार रुपए दिए। समानंद द्वारा दी गई रेफर स्लीप को लेकर वह प्राइवेट अल्ट्रासाउंड केंद्र पर पहुंची। जहां पर एक हजार रुपए लेकर उसका अल्ट्रासाउंड किया गया। वहां पर कमल ने कहा कि उसका साथी कृष्णा आधे घंटे में रेलवे स्टेशन के पास मिलेगा। वह टीम के साथ वहां पर पहुंची तो वहां पर कृष्णा आया। उसने जैसे ही वहां पर 10 हजार रुपए जैसे ही उसने कृष्णा को दिए तो टीम ने उसे काबू कर लिया। ये लोग मेहता अल्ट्रासाउंड में केस भेजते थे। हाल में जिस महिला के जरिये पकड़ में आए हैं, उसका अल्ट्रासाउंड यहां से हुआ, लेेकिन सेंटर में सब नियम के हिसाब से मिला। वहां नहीं बताया कि गर्भ में पल रहा बच्चा लडक़ा है या लडक़ी। वहीं आरोपियों ने पूछताछ में बताया कि वे 10 हजार रुपए पहले ले लेते थे। 5 हजार रुपए बाद में लेते थे। अल्ट्रासाउंड कराने के बाद महिला का कोई वॉट्सएप नंबर ले लेते थे। रात 10 बजे के बाद उस पर मैसेज भेजते थे कि रिपोर्ट में लडक़ा आया है या लडक़ी। हालांकि कहा जा रहा है कि आरोपी लोगों को गुमराह करते थे। उनके पास ऐसा तथ्य नहीं होता था कि रिपोर्ट में लडक़ा आया है या लडक़ी।