नई दिल्ली। डॉक्टरों को जेनेरिक दवाएं लिखना कानूनी रूप से अनिवार्य कर दिया जाए तो उन्हें कथित रूप से रिश्वत देने का मुद्दा सुलझ जाएगा। यह तीखी टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने फार्मा कंपनियों को लेकर की है। एससी ने कहा है कि दवा कंपनियों की ओर से डॉक्टरों को तर्कहीन दवाएं लिखने और महंगे ब्रांडों को बढ़ावा देने की कोशिश की जाती है। इसके लिए ही वे डाक्टरों को रिश्वत देते हैं।
एक मामले पर जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ सुनवाई कर रही थी। पीठ ने कहा कि जब तक फार्मास्युटिकल मार्केटिंग के यूनिफॉर्म कोड को कानून का रूप नहीं दे दिया जाता, तब तक कोर्ट दवा कंपनियों की ओर से अनैतिक मार्केटिंग पै्रक्टिसेस को नियंत्रित और रेगुलेट करने के लिए गाइडलाइन निर्धारित कर सकता है। इस दौरान जस्टिस मेहता ने पूछा कि क्या कोई कानूनी आदेश है कि डॉक्टरों को केवल जेनेरिक दवाएं ही लिखनी चाहिए, किसी विशिष्ट कंपनी या ब्रांड की दवाएं नहीं।
राजस्थान में अब एक कार्यकारी निर्देश है कि हर चिकित्सा पेशेवर को जेनेरिक दवा लिखनी होगी। वे किसी भी कंपनी के नाम से दवा नहीं लिख सकते। इससे चीजों का ध्यान रखा जाना चाहिए। वकील ने जवाब दिया कि कोई कानूनी आदेश नहीं है और केवल एक स्वैच्छिक संहिता मौजूद है और इसके अनुसार डॉक्टरों को जेनेरिक दवाएं लिखनी चाहिए। इस पर जस्टिस मेहता ने सुझाव दिया कि बस इस दिशा में सोचें और अगर यह निर्देश पूरे देश में दिया जाए, तब इन सभी बातों का ध्यान रखा जाएगा।
कोर्ट 24 जुलाई को करेगा सुनवाई
उन्होंने कहा कि राजस्थान को एक उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है। प्रतिवादी के वकील ने बताया कि वास्तव में भारतीय चिकित्सा परिषद द्वारा सभी डॉक्टरों को केवल जेनेरिक दवाएं लिखने का निर्देश दिया गया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि चूंकि मामले में कुछ समय लगेगा, इसलिए वह इसे अवकाश के बाद सुनवाई के लिए रखेगा। अब कोर्ट मामले में 24 जुलाई को सुनवाई करेगा। दरअसल, फार्मा उद्योग में अनैतिक मार्केटिंग प्रक्टेसेस की प्रभावी रोकथाम और नियंत्रण की मांग की जा रही है। इस संबंध में याचिका अधिवक्ता सुरभि अग्रवाल की ओर से तैयार की गई थी और अधिवक्ता अपर्णा भट्ट के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई है।