नई दिल्ली। लिव-333 बनाने और बेचने से रोकने का आदेश बरकरार रख गया है। दिल्ली उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने यह आदेश सुनाया। राजस्थान औषधालय को लिव-333 का उपयोग या बिक्री करने से रोकने के आदेश को बरकरार रख है। बता दें कि हिमालय ग्लोबल होल्डिंग्स और हिमालय वेलनेस कंपनी के ट्रेडमार्क लिव.52 का उपयोग लिवर टॉनिक के रूप में किया जाता है। इस कंपनी के समान किसी अन्य नाम से दवा बनाने और बेचने से रोकने के एकल न्यायाधीश के आदेश दिए थे।

न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर और न्यायमूर्ति अजय दिगपॉल की पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता (राजस्थान औषधालय) द्वारा ऐसे चिह्न को अपनाना, जो लिवर के संक्षिप्त रूप लिव और उसके बाद एक संख्या का रूप है, निर्दोष नहीं माना जा सकता। पीठ ने कहा कि स्पष्ट इरादा लिव.52 चिह्न के करीब आना प्रतीत होता है। इसका उपयोग प्रतिवादी (हिमालय) द्वारा किया जा रहा था।

इसके अलावा, हिमालय द्वारा ‘लिव.52’ चिह्न का पंजीकरण जुलाई 1957 से ही है, यह आदेश में कहा गया है। केवल यह तथ्य कि अन्य उल्लंघनकर्ता भी सह-अस्तित्व में हैं, स्पष्ट रूप से अपीलकर्ता को उल्लंघन करने का लाइसेंस नहीं दे सकता है। इसके अलावा, हिमालय द्वारा ‘लिव.52’ चिह्न का पंजीकरण जुलाई 1957 से ही है।