नई दिल्लीः अगर विकासमार्ग एक्सटेंशन स्थित पुष्पांजलि मेडिकल सेंटर की हर ईंट पर ममता से भरी वृंदावन स्थित वात्सल्य ग्राम की संस्थापिका दीदी मां साध्वी ऋतंभरा की छाप हो तो कहने की जरुरत नहीं है कि वहां पहुंचे किसी मरीज के लिए ममता और मनुष्यता की कभी कोई कमी नहीं होती। ऐसा कभी नहीं हुआ कि कोई मरीज इस अस्पताल से पैसे के अभाव में बिना इलाज के वापस चला गया हो। दीदी मां ने भी इस बात की गवाही दी कि पुष्पांजलि मेडिकल सेंटर में मनष्यता कूट कूट कर भरी हुई है। वहीं दूसरी तरफ उन्होंने देहरादून के जिस अस्पताल की कहानी बताई वह मानवता को शर्मसार करने वाली थी।
मौका (जुलाई 7 को) अगले वित्तीय वर्ष में 100 बेड के एक अलट्रा माडर्न अस्पताल में तब्दील होने की तरफ अग्रसर पुष्पांजलि मेडिकल सेंटर में नए निर्माणों के प्रमोचन का था। पुष्पांजलि मेडिकल सेंटर के चेयरमैन व प्रबंध निदेशक डा. विनय अग्रवाल ने कहा कि अस्पताल के 36 साल के अस्तित्व के क्रम में एक भी ऐसा मौका नहीं आया कि जब कोई मरीज पैसे के अभाव की वजह से वापस चला गया हो। ‘मैंने यह प्रतिज्ञा भी ली है कि ऐसा आगे भी कभी नहीं होगा। डा. विनय ने कहा कि इसी को मैं अपनी सफलता भी मानता हूं। दीदी पुष्पांजलि के नए प्रशासनिक ब्लाक, ओपीडी और डायलिसिस यूनिट विस्तार के उद्घाटन के लिए यहां पधारी थी।
इंडियन मेडिकल एसोसियेशन के पूर्व अध्यक्ष डा. अग्रवाल ने ही गाजियाबाद के वैशाली में पुष्पांजलि क्रासले नामक अत्याधुनिक अस्पताल की स्थापना की है जो अभी मैकस हेल्थकेयर के स्वामित्व में है। उस अस्पताल में मरीजों के प्रति डा. विनय की ममता की मिसाल आज भी दी जाती है।
पद्मभूषण साध्वी ऋतंभरा दीदी ने कहा कि वह पुष्पांजलि अस्पताल को वात्सल्य ग्राम का ही एक हिस्सा मानती हैं। दीदी ने डा. विनय को लगातार गिरते मूल्यों के बीच एक उदाहरण बताते हुए पुष्पांजलि मेडिकल सेंटर की भूर भूरि प्रशंसा की और इस बात को रेखांकित किया कि वही अस्पताल आदर्श है जहां मरीजों के साथ पुष्पांजलि जैसा ही व्यवहार होता हो। लेकिन दीदी ने बताया कि उन्होंने एक अस्पताल के विद्रूप रूप को देखा है। दीदी ने देहरादून के उस अस्पताल का नाम तो नहीं बताया लेकिन यह बताया कि कैसे उस अस्पताल का व्यवहार मानवता को शर्मसार करने वाला था।
दीदी मां ऋतंभरा ने कहा कि डाक्टर भगवान होते हैं। मैं भी मानती हूं कि डाक्टर भगवान होते हैं। लेकिन उन्होंने उनका दूसरा रूप भी देखा है। उन्होंने बताया कि वात्सल्य ग्राम की एक साधिका को रात को ब्रेनहेमरेज हो गया। उन्हें देहरादून ले जाया गया.। उनकी जान बचाने के लिए तत्काल सर्जरी जरुरी थी लेकिन अस्पताल अड़ा रहा कि जब तक कुछ लाख रुपए जमा नहीं किए जाते तब तक सर्जरी नहीं की जा सकेगी।
दीदी ने आगे कहा- मनुष्यता बहुत आसमान छूने का दंभ भरती है, लेकिन व्यवहार में कहीं नीचे गर्त में दिखाई देती है। उन्होंने कहा कि अस्पतालों में संवेदना और मनुष्यता होना बहुत जरुरी है। ऐसे गिरते मूल्यों के बीच भी4 डा. विनय मूल्यों के साथ , संवेदना के साथ, मनुष्यता के साथ, अपने कर्तव्यबोध के साथ आज तक मरीज की सेवा करते रहे हैं। मैंने डा. विनय की अपने माता पिता की भक्ति भी करीब से देखी है। डा. विनय ने कई उतार चढ़ाव देखे, लेकिन कभी धैर्य और मनुष्यता का दामन कभी नहीं छोड़ा।
दीदी ने बताया – वात्सल्य ग्राम में मेरे पास 6-7 महीने की नवजात बच्चियां आती हैं, जिनके बचने की संभावना नहीं होती है लेकिन मैं निश्चित रहती हूं कि वातसल्य का एक हिस्सा पुष्पांजलि भी है। मेरा इतना बड़ा पुष्पांजलि परिवार है। पुष्पांजलि ने कभी भी उन बच्चियों के इलाज और सेवा में कमी नहीं की। वातस्यल ग्राम की यय़ोदा मैया 2-2 3-3 महीने तक ऐसे बच्चों के साथ पुष्पांजलि में रही हैं। डा. विनय ने कहा कि सेवा का ऐसा भाव दीदी की ही कृपा से आई है। पुष्पांजलि में हमने अभावग्रस्त मरीजों को अपनी जेब से पैसे भी दिए। हमारे एक दर्जन डाक्टरों व कर्मचारियों ने कई बार 36- 38 यूनिट खून तक दिए।
डा विनय ने कहा कि दीदी पुष्पांजलि के लिए अपरिहार्य रही। जब कभी यहां कोई नया काम हुआ दीदी ने आने को कभी ना नहीं कहा। उन्होंने कहा कि पुष्पांजलि की ईंट ईंट पर दीदी का नाम अंकित है। उन्होंने बताया कि किस तरह ऋतंभरा जी वात्सल्य की प्रतिमूर्ति हैं। वृंदावन स्थित वात्सल्य ग्राम में इसकी झांकी मिलती है। बच्चे उनसे चिपके रहते हैं। बच्चे उनके शरीर से लटके रहते हैं।
अंत में पुष्पांजलि मेडिकल सेंटर के ममत्व की एक रोचक बानगी सुनिए- 1991 का साल था। पुष्पांजलि नया नया ही अस्तित्व में आया था। एक नेपाली दंपत्ति आई। एक बेटी ने जन्म लिया। बहुत कम वजन की कमजोर बच्ची थी। बच्ची को दूध पिलाने के लिए जब मां को ढूंढा गया तो दोनों गायब हो गए थे। पुष्पांजलि ने उस बच्ची को करीब 2 महीने तक अपने पास रखा। फिर पुलिस की पूरी जानकारी में अमेरिका में बसी एक भारतीय दंपत्ति ने उसे गोद ले लिया और उसका नाम पुष्पांजलि रखा। बाद में जब डा. विनय एक बार अमेरिका गए तो न्यू जर्सी में रह रही पुष्पांजलि बड़ी हो गई थी। शायद पुष्पांजलि से जुड़ी इस घटना की वजह से ही डा. विनय अपने अस्पताल में किसी बेटी के जन्म को एक उत्सव की तरह मनाते हैं।