नई दिल्ली। वैक्सीन और दवाओं के क्लिनिकल ट्रायल्स अक्सर गरीब देशों में होते हैं। सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने केंद्र द्वारा बनाए गए नियमों पर आपत्तियां और दलीलें दाखिल करने की अनुमति दी है।
उन्होंने कहा कि क्लिनिकल परीक्षणों और नई दवाओं के क्लिनिकल परीक्षणों के लिए नियम 2019 में बनाए गए थे।
भारत में क्लिनिकल परीक्षणों और नई दवाओं के लिए अनुमोदन प्रक्रिया को कारगर करने के लिए कदम उठाए गए हैं। इसके लिए 2024 में नई औषधि और क्लिनिकल परीक्षण (संशोधन) नियम अधिसूचित किया गया था। इसका उद्देश्य रोगी सुरक्षा प्रोटोकॉल में सुधार करते हुए इसके वैश्विक मानकों का अनुपालन को सुनिश्चित करना है।
बता दें कि एनजीओ स्वास्थ्य अधिकार मंच की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने इस संबंध में साल 2012 में एक जनहित याचिका दायर की थी। इस याचिका में उन्होंने बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों की ओर से देश भर में बड़े पैमाने पर नैदानिक दवा परीक्षणों का आरोप लगाया था।
याचिका में कहा गया कि गरीब नागरिकों को दवाओं के परीक्षण में गिनी पिग के रूप में इस्तेमाल किया जाता है और न ही उन्हें पर्याप्त मुआवजा दिया जाता है। दावा किया गया कि विभिन्न दवा कंपनियों ने देश भर में अंधाधुंध तरीके से क्लिनिकल ड्रग ट्रायल किए और भारतीय नागरिकों को गिनी पिग के रूप में इस्तेमाल किया है।