भारतीय दवा नियंत्रण सबसे कमजोर : वीके सुब्बुराज

मूल्य निर्धारण पर बोले –   विभागों ने मिलकर दवा उद्योग का गला घेंटने का काम किया 
नई दिल्ली

जिस देश का औषधि सचिव खुद यह बात स्वीकार कर रहा है कि भारतीय दवा नियंत्रण विश्व में सबसे कमजोर है। वहां सुलभ-सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं के हालात का आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है। औषधि विभाग के सचिव वीके सुब्बुराज ने कहा कि स्वास्थ्य मंत्रालय इससे अवगत है और विशिष्ट मानकों को सुधारने, निरीक्षकों की संख्या बढ़ाने और दवा नियंत्रक कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है। सचिव ने कहा कि घरेलू उद्योग – फार्मा और चिकित्सा उपकरण, दोनों मिलाकर 2030 तक बढ़कर 300 अरब डालर का हो जाने की क्षमता है जो फिहलाल 32 अरब डालर है लेकिन विभिन्न मुद्दों को सुलझाने के लिए एक सक्रिय रवैये की जरूरत है। सुब्बुराज ने कहा, जब तक हम सक्रिय पहल नहीं करते यह बहुत बड़ा लक्ष्य है।  इस क्षेत्र की समस्या दूर करने में लंबा समय लगेगा। उन्होंने दवा उद्योग के संघों के विपरीत दिशाओं में काम करने का उल्लेख करते हुए कहा, यदि हम कोई फैसला करते हैं तो कोई इसकी प्रशंसा करेगा लेकिन दूसरे इसकी आलोचना करेंगे। आईपीए, ओपीपीआई और आईडीएमए जैसे विभिन्न संगठन हैं जो देश के दवा उद्योग के विभिन्न खंडों का प्रतिनिधित्व करते हैं। सुब्बुराज ने एक उदाहरण देते हुए कहा कि विभिन्न संगठनों के अलग-अलग विचार के कारण सरकार को समान औषधि विपणन व्यवहार संहिता :यूसीपीएमपी: लाने में एक साल का समय लगा। सचिव के मुताबिक थोक दवा नीति के कार्यान्वयन में कई साल लग सकते हैं। सुब्बुराज ने कहा, हमने थोक दवा नीति तैयार की लेकिन आवश्यक मंजूरी प्राप्त करने और इसे कार्यान्वित करने में बरसों लगेंगे। ऐसा नहीं है कि एक दिन में फैसला ले लिया क्योंकि विभिन्न विभाग अलग – अलग दिशा में खींचते हैं। सरकार की इच्छा के बावजूद उन्होंने सार्वजनिक उपक्रमों को लीक पर लाने की प्रक्रिया को मुश्किल काम बताया। मूल्य निर्धारण के बारे में हालांकि उन्होंने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा कि सभी विभागों ने मिलकर दवा उद्योग का गला घेंटने का काम किया है। सुब्बुराज ने कहा, मूल्य निर्धारण महत्वपूर्ण मुद्दा है जो सारे उद्योग को परेशान कर रहा है।  मुझे लगता है कि सभी विभाग मिलकर कोशिश कर रहे हैं कि इस क्षेत्र का गला घोंट दिया जाए। थोक दवा नीति के संबंध में उन्होंने कहा, विचार यह है कि अगले 10 साल में थोक दवा आयात पर कोई निर्भरता न रहे। हम इसकी दिशा में काम कर रहे हैं विभिन्न विभागों तथा उद्योग के साथ सहयोग कर रहे हैं ताकि इस क्षेत्र में अच्छा माहौल बने। उन्होंने कहा कि उद्योग को जेनेरिक दवाओं के अलावा अन्य खंडों पर ध्यान देना चाहिए ताकि इस क्षेत्र के मुनाफे को बढ़ाया जा सके।
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