खुलासा: बिहार के स्कूली बच्चों पर बीमारियों का साया

नई दिल्ली: बिहार के सरकारी स्कूल में पढऩे वाले 40 फीसदी से ज्यादा बच्चे कुपोषण और खून की कमी (एनीमिया) से ग्रस्त है। बच्चे दांत और आंखों की बीमारी के भी शिकार हो रहे हैं। हालांकि चिकित्सक इसे टीवी-मोबाइल, चॉकलेट और फास्टफूड की आदत का नतीजा बता रहे हैं। लेकिन सच्चाई यह भी है कि सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों के परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति और स्वास्थ्य संबंधी जागरुकता का अभाव सेहत में गिरावट का कारण बन रहा है। राष्ट्रीय अंधता निवारण कार्यक्रम के तहत प्रदेश में 2016-17 में किए गए सर्वेक्षण के दौरान इन सब बातों का खुलासा हुआ।

राजधानी पटना में सबसे अधिक बच्चे पीडि़त पाए गए। इसके बाद मधेपुरा, मुंगेर, पश्चिम चंपारण और बकसर है। स्वास्थ्य विभाग ने एक गैर सामाजिक संगठन के साथ मिलकर सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले 8 से 14 साल के बच्चों का नेत्र परीक्षण किया। सहायकों की कमी के कारण इस सर्वे में सभी स्कूलों के बच्चों का नेत्र परीक्षण नहीं हो सका। क्योंकि विभाग के पास नेत्र सहायकों की कमी है।

स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की मानें तो स्क्रीनिंग में पता चला कि जिन बच्चों की आंखों में गड़बड़ी मिली उनमें से अधिकांश ज्यादा देर तक टीवी और मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं। कुछ में पोषण तत्व का अभाव था। 18 साल के बच्चों में 19 प्रतिशत ऐसे मिले जिनमें दृष्टिदोष है। पूरे राज्य की बात करें तो करीब डेढ़ करोड़ स्कूली बच्चों में से 21 लाख में दृष्टिदोष है। इसी तरह नेशनल हेल्थ मिशन के तहत चलाए गए स्क्रीनिंग प्रोग्राम में पता चला कि स्कूल जाने वाले बच्चों में 42प्रतिशत के दांत में गड़बड़ी है। जिसका मुख्य कारण बिस्कुट, चॉकलेट, फास्टफूड का सेवन और उसके बाद दांतों की सफाई का अभाव बताया गया। नेत्र रोग विशेषज्ञों के मुताबिक, आंख की पुतली एक मिनट में औसतन 16 से 17 बार झपकती है। जब बच्चे मोबाइल या टीवी देखते हैं तो यह चार से पांच बार ही झपकती है। देर तक आंख खुला रहने से आंख की नमी सूखने लगती है। ऐसे बच्चे ड्राई आई सिंड्रोम से पीडि़त हो जाते हैं,  इनमें दृष्टिदोष अधिक होता है।

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